Saturday, October 16, 2010

' गुब्बारा ! ' : हास्य-कविता ! ( Hasya Kavita - Majaal )

टीवी पर क्रिकेट मैच,
बीच विज्ञापन आया,
सामने सुन्दर बाला,
'अरे वाह ! पटाखा !',
'गदगदा बदन,
जैसे गुदा हुआ आटा  !
सूरत इसकी काफी,
मिलती जुलती 'ज्योति',
उन दिनों जो हम ,
दिखा देतें थोड़ी हिम्मत ,
कमबख्त आज,
वो शायाद  अपनी होती !'

'अरे, ये किचन में,
आवाज़ कैसी  आई ?
ओ तेरी  ! फिर भूला,
लाना चूहा दवाई !
दवाइयों की कीमत,
है आसमान छूती,
पगार वहीँ पुरानी,
कैसे कटेगी  रोटी ?!
और बेटी की भी शादी,
करनी है कुछ बरस में,
जिंदगी है बीती ,
खरच ही खरच में !

जिंदगी भी देखो,
क्या चीज़ ये अजब है,
कोई बिज़ी बिज़ी बस,
कोई जीता बेसबब है!
कोई साहिल किनारे,
कोई लगता गोता,
कौन क्या है पाता,
जाने कौन क्या है खोता ?
हम भी कर लेते कुछ तो,
जो मिल जाता एक मौका,
अरे हो गया मैच  शुरू,
ये लगाया चौका !

एक मिनट की मौहलत ,
आधी दुनिया घूम आया यारा,
बची भी नाप देगा,
जो  छोड़ दोगे उसे दोब्बारा ,
अंट संट जाएगा,
जो बिन बांधे छोड़ा,
मन कमबख्त 'मजाल' ,
है एक ऐसा गुब्बारा !

3 comments:

  1. मन कमबख्त 'मजाल'
    है एक ऐसा गुब्बारा !
    क्या बात है

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  2. यानि आप उसे बांध कर छोडनें के हक़ में हैं !

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  3. आप सभी का पदने और टिपण्णी करने के लिए आभार ..

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