Monday, November 1, 2010

हास्य गीत : अरे ! आज तो पड़ी बड़ी, कड़ाके की ठंड है !

कुछ दिनों से मौसम खुशनुमा हो गया है. सुबह की हवाएँ ठंडक लिए हुई है. एक आद हफ्ते में ठण्ड पूरी तरह से शबाब में आ जानी चाहिए... बहरहाल, एक हास्य गीत ठण्ड पर ....  

अरे ! आज तो पड़ी बड़ी,
कड़ाके की ठंड है !
ठिठुर ठिठुर के भर रही,
दिल में उमंग है !
इनदिनों है काँपता,
फिरे  सारा बदन,
बचाते फिर रहें है हम ,
अपना पूरा तन,
ऊपर से बाहर छाया है ,
कोहरा घुप घन,
घर से बाहर जाने का,
बिलकुल करे न मन !
दुनिया में सबसे हसीं जगह,
आज ये पलंग है !
दुबके रहना रजाई में ही,
आज तो पसंद है !

अरे ! आज तो पड़ी बड़ी,
कड़ाके की ठंड है ! ....

शून्य के करीब,
डोलता है तापमान,
बाल्टी का पानी,
बरफ होने को मेरी जान !
हमाम जाने में,
निकलते है मेरे प्राण !
गीज़र न हो तो,
गैस पर गरम करो श्रीमान!
की मिज़ाज आजकल ,
मौसम का अंड बंड है !
ठंडे पानी की छुअन से ही,
तबीयत होती झंड है !

अरे ! आज तो पड़ी बड़ी,
कड़ाके की ठंड है ! ....

कंपकंपाती आवाज में,
गुनगुनाते मौसम आया !
जेब हाथ सीटी ,
बजाते मौसम आया !
सूत सूत खूब,
खाने का मौसम आया,
फिर से एक बार ,
है हमने ये पाया की ,
पकौड़े  ये जन्दगी के,
बहुत अहम् से अंग है !
स्वर्ग है यहीं पे जो,
चटनी भी अगर संग है !

अरे ! आज तो पड़ी बड़ी,
कड़ाके की ठंड है ! ....

नाक बहती यूँ की,
समंदर कोई उफान !
खाँस खाँस आ गए,
हलक में मेरे प्राण !
टोपी, मफलर, दस्तानों का,
सब तरफ बखान,
स्वेटर, जैकट, जो भी गरम,
है इनदिनों महान !
उफ़! इस ठंड का प्रकोप,
हमें लगे अनंत है !
धैर्य धरो पार्थ !
की आगे आता वसंत है !

अरे ! आज तो पड़ी बड़ी,
कड़ाके की ठंड है !  ....

7 comments:

  1. नाक बहती यूँ की,
    समंदर कोई उफान !
    खाँस खाँस आ गए,
    हलक में मेरे प्राण !
    हा हा हा शुभकामनायें\

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  2. ठण्ड तो यहां भी पड़ गई जनाब ! ख्याल और टिप्पणी,दोनों ही बड़ी मुश्किल से रजाई छोड़ कर बाहर निकले हैं !

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  3. इस मौसम में:
    रूह कांपती गरीबों की,
    अमीरों को घमंड है....
    सही है मजाल भाई....
    आ रही ठण्ड है!
    आशीष
    --
    पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

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  4. बहुत खूब .. आपने तो ठण्ड का बिगुल बजा दिया... बहुत खूब ..

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