Sunday, October 10, 2010

कट्टी पुच्ची : बाल-कविता ( Bal Kavita - Majaal )

जितना हो सके, उत्ती कर लें,
झूठी नहीं, सच्ची मुच्ची कर लें,
ग़म से कर ले, हम कुट्टी ,
और खुशियों से , पुच्ची  कर लें !

ग़म होती है, गन्दी चिज्जी,
ख़ुशी होती, चिज्जी अच्छी,
अच्छी  अच्छी,  करें पक्की,
गन्दी को, हम 'छी छी' कर दें !


मिल जुल कर रहे सदा हम,
न लड़े, न हो खफा हम,
गुस्सा आए, तो उसे हम ,
माँ जैसी प्यारी, थप्पी  कर दें !

हँसता चेहरा सबको जँचता,
लगता सबको अच्छा अच्छा,
जैसे गोलू मोलू बच्चा,
सबको लगता - पप्पी कर दें !

5 comments:

  1. बहुत खूबसूरत कविता

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  2. खूब दिमागी कसरत की है। बढिया। शुभकामनायें।

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  3. शानदार!! क्या मज़ाल कि आनंद न आए

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