Wednesday, November 17, 2010

काला हास्य - ' म र ण '

बचपन, हमदम
हस, ग़म,
सब समरण,

एक एक कर,
मगर, न लय,
सब उलट  पलट,
सरपट  धड़ धड़  !
न जल हलक
मगर,
बदन,
तर ब तर !
  
सस कम पल पल,
कम दम क्षण क्षण,
च,
तत पशचत,  
ख़तम सब  !
धन, घर, यश,
सब रह गय धर !
मट दफ़न मट !
सब परशन  हल,
पर,
हर जन असफल, 
सकल !

6 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति ........नए शब्दों के साथ .... अच्छा लगा आपको पढ़ना ..... बधाई ..

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  2. आपका नया अंदाज भी अच्छा लगा!

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  3. इस प्रयोग को ज्यादा दोहराइए मत !

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  4. आप सभी का आभार ...
    अली साहब, सब पुराना माल है, नया तो बहुत दिनों से नहीं लिखा, उम्मीद भी कम ही है, तो आप खुद तो चुंगल से बरी ही समझिये ;)

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  5. शब्दों से खेलना बहुत अछा लगा सर ....
    आपको और आपके पूरे परिवार को ईद मुबारक ...

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  6. तत पशचत, ख़तम सब !धन, घर, यश,सब रह गय धर !मट दफ़न मट !
    सही कहा |

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