Saturday, November 20, 2010

कुछ तुकबंदी, कुछ शायरी, और कुछ फलसफे ...( Shayari - Majaal )

मिला एक, चाहे दो गया,
हँसता ही चला वो गया !

यादें कुरेद हासिल हो क्या ?
वापिस कब आया, जो गया ?!

मैला सा कुछ मलाल था,
आँसू बहा, और धो गया !

पूरी जिंदगी आगे बची,
ऐसा भी क्या है खो गया ?!

एक उम्र बाद पता चला,
क्या बीज  था वो  बो गया !

देखी जिंदगी,  हुई हैरानगी,
सब खुद ब खुद ही हो गया !

ये सोच चीज़ कातिलाना,
समझ फँसा तू,  तो गया !
 
इलाजे ग़म आसाँ 'मजाल',
भरपेट खाया,  सो गया !

5 comments:

  1. जिन्दगी कहां बाकी रहती है दोस्त...

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  2. मजाल साहब,
    आपके फिलासोफराना तेवर , बेहतर कहूं याकि बेहतरीन !

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  3. मैला सा कुछ मलाल था,
    आँसू बहा, और धो गया !
    बहुत खूब ..

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  4. आप सभी का प्रतिक्रियाओं के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ....

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  5. मजाल जी
    क्या बात है ! कमाल की रचना है
    जी कर रहा है हम भी कुछ कहें…
    रचना मजाल की
    कितने कमाल की

    बहुत ख़ूब ! बहुत ख़ूब !!


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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