अक्सर गुजरते है हम , तमन्ना-ए-बाज़ार से,
हो नसीब तो खरीद के, वर्ना बस दीदार से !
या खुदा तेरी आबरू, फिर पड़ी खतरे में है,
दोनों तरफ लोग खड़े, दिखते है तैयार से !
दुनिया रोए तो रोए , गरीब तो खुश बेपनाह,
पक्का घर मिल ही गया, आखिर इस मजार से !
रखते स्वाद समंदर, आँसू को आजमाओं तो,
लेना चाहे तजुर्बा जो, कोई अपनी हार से !
'मजाल' को कबूल, चाहे जितनी लानत दीजिये ,
बस इतनी सी इल्तिजा , की कहिये जरा प्यार से !
मजाल हमारी क्या
ReplyDeleteजो शायरी के आपकी
जाल में न फंसा
बहुत चिंतित है ब्लु लाइन बसे
मजाल हमारी क्या
ReplyDeleteजो शायरी के आपकी
जाल में न फंसा
बहुत चिंतित है ब्लु लाइन बसे
रखते स्वाद समंदर, आँसू को आजमाओं तो,
ReplyDeleteलेना चाहे तजुर्बा जो, कोई अपनी हार से !
यही तजुर्बा असली तजुर्बा है
इतने प्यार से दाद ही दी जा सकती है.
ReplyDeleteआप सभी का ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार ...
ReplyDeleteलेना चाहे तजुर्बा जो, कोई अपनी हार से !
ReplyDeleteबिल्कूल सही कहा |