Monday, November 22, 2010

शायरी : अक्सर गुजरते है हम , तमन्ना-ए-बाज़ार से, हो नसीब तो खरीद के, वर्ना बस दीदार से ! ( Shayari - Majaal )

अक्सर गुजरते है हम , तमन्ना-ए-बाज़ार से,
हो नसीब तो खरीद के, वर्ना बस दीदार से !

या खुदा तेरी आबरू, फिर पड़ी खतरे में है,
दोनों तरफ लोग खड़े, दिखते है तैयार से !

दुनिया रोए तो रोए , गरीब तो खुश बेपनाह,
पक्का घर मिल ही गया, आखिर इस मजार से !

रखते स्वाद समंदर, आँसू को आजमाओं तो,
लेना चाहे तजुर्बा जो, कोई अपनी हार से !

'मजाल' को कबूल,  चाहे जितनी लानत दीजिये ,
बस इतनी सी इल्तिजा , की कहिये जरा प्यार से !

6 comments:

  1. मजाल हमारी क्‍या
    जो शायरी के आपकी
    जाल में न फंसा
    बहुत चिंतित है ब्लु लाइन बसे

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  2. मजाल हमारी क्‍या
    जो शायरी के आपकी
    जाल में न फंसा
    बहुत चिंतित है ब्लु लाइन बसे

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  3. रखते स्वाद समंदर, आँसू को आजमाओं तो,
    लेना चाहे तजुर्बा जो, कोई अपनी हार से !
    यही तजुर्बा असली तजुर्बा है

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  4. इतने प्यार से दाद ही दी जा सकती है.

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  5. आप सभी का ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार ...

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  6. लेना चाहे तजुर्बा जो, कोई अपनी हार से !

    बिल्कूल सही कहा |

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