वक़्त ही वक़्त कमबख्त ! हास्य कविता,व्यंग्य,शायरी व अन्य दिमागी खुराफतों का संकलन (Majaal)
वक़्त ही वक़्त कमबख्त है भाई, क्या कीजे गर न कीजे कविताई !
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Sunday, October 24, 2010
पिता - जिक्र उनका, जो रह जातें है अक्सर बे-जिक्र से ..............
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जिक्र उनका लफ़्ज़ों में, जिनसे है सीखे लफ्ज़ ?! बस खुदा ही समझ लीजिये, इंसान की तरह ... कुछ इस तरह से देतें, ऊपरवाले को सजदे, करतें है ...
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