वक़्त ही वक़्त कमबख्त है भाई, क्या कीजे गर न कीजे कविताई !
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Friday, November 12, 2010
Saturday, October 16, 2010
वक़्त ही वक़्त कमबख्त है भाई, क्या कीजे गर न कीजे कविताई !