ग़ज़ल हो पूरी कैसे, दोपहर होने के पहले ?
सोच हो जाती रुखसत , बहर होने के पहले !
या तो फलसफे ही, कर गए दगाबाजी,
याक़ी खामोश तूफाँ, कहर होने के पहले !
साँप का काटा, या लत का मारा,
दर्द मजा देता, जहर होने के पहले !
कागज़ी शेर तो खूब कहे 'मजाल',
अँधेरे का क्या करें, सहर होने के पहले !!
9 comments:
likhte rahen ..shubhkamnayen...:)
saadar
वाह वाह वाह अच्छा लगा |
साँप का काटा, या लत का मारा,
दर्द मजा देता, जहर होने के पहले !
बहुत खूब ..
सोच हो जाती रुखसत , बहर होने के पहले !
हा हा हा हा हा हा हा ...अपना भी येही हाल है मजाल साहब...
नीरज
साँप का काटा, या लत का मारा,
दर्द मजा देता, जहर होने के पहले !
वाह क्या बात कही। सुन्दर । बधाई।
ग़ज़ल हो पूरी कैसे, दोपहर होने के पहले ?
सोच हो जाती रुखसत , बहर होने के पहले !
सच शब्दों को बांधना कहाँ आसान है....
अच्छी गजल।
आप सभी लोगों का आभार ;)
एक आप हैं जो अंधेरे का फायदा नहीं उठा पा रहे वर्ना ...
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