कुछ घरेलु किस्म की शायरी ;)
मौके बेमौके हो जाते मेहरबान से,
बच कर ही रहिये ऐसे कद्रदान से !
जली जुबान दिन भर रखेगी परेशान,
यादों की चुस्कियाँ लीजिये इत्मीनान से !
नज़रंदाज़ कर करके संभाले है रिश्ते,
एक से सुना, निकला दूसरे कान से !
सुलझेगा न मुद्दा, नुमाइश ही होगी,
खबर न बाहर जाने पाए मकान से !
सबकुछ मयस्सर, फिर भी क्या कमी है ?
'मजाल' कभी कभी जिंदगी ताकते हैरान से !
8 comments:
बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
सुलझेगा न मुद्दा, नुमाइश ही होगी,
खबर न बाहर जाने पाए मकान से !
बिलकुल सही ...अच्छी चुस्कियां यादों की
जली जुबान दिन भर रखेगी परेशान,
यादों की चुस्कियाँ लीजिये इत्मीनान से !
achcha laga
सुलझेगा न मुद्दा, नुमाइश ही होगी,
खबर न बाहर जाने पाए मकान से !
बिलकुल सही .....
बढ़िया...
सुलझेगा न मुद्दा, नुमाइश ही होगी,
खबर न बाहर जाने पाए मकान से !
बहुत खूब ....
बात घर से बाहर ना जाने दीजियेगा तो घरेलू ही कह लायेगी :)
वाह! क्या बात है, बहुत सुन्दर!
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