Wednesday, September 22, 2010

हास्य कविता - मिज़ाज रंगीन,मामला संगीन ! ( Hasya Kavita - Majaal )

एक थी परवीन,
बला सी हसीन,
कुदरत-ए-हूर,
 बेहतर-ए-बेहतरीन !

एक थे मियाँ 'मजाल',
उमर नब्बे के पार,
थी जवानी ख़याल,
पर तबीयत शौक़ीन !

एक दिन मियाँ 'मजाल'
को दिख गयी परवीन,
मिज़ाज रंगीन,
तो मामला संगीन !

' सुन ए नाज़नीन,
तू हमें लगे नमकीन,
जो मुस्कुरादे तू,
तो क्या तेरी तौहीन ?
न कर हमसे नज़रे चार,
पर कम से कम दो-तीन !'

'कर लेती नज़रे चार,
ज़रा होते जो नवीन !
करें उमर का  लिहाज़,
बस शतक से कम दो तीन !
जो चाहें मेरा प्यार,
तो हम अब भी है तैयार,
बन जाइए अब्बाजान,
की हम है यतींम !'

तब से मियाँ मजाल का,
रूमानी ग़ायब  ख़याल,
अब बस गीता कुरान,
में करतें हैं यकीन !

दिल में ज़खम अब भी,
पर है ताज़े और तरीन,
जो पूछ ले कोई,
'क्या लेंगें कुछ नमकीन ?'
घबरा के कह देतें,
' ना जी नाज़नीन,
की आज कल तबीयत,
डाइबीटीस के अधीन !!! '

4 comments:

  1. शुगर के भरोसे जो इतराईयेगा
    यकीं जानिये , ना बच पाईयेगा
    वो ले आयेंगी जो शुगर फ्री किसी दिन
    भला उस रोज़ फिर किधर जाईयेगा :)

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  2. अरे जनाब डाईबिटीज में तो नमकीन लिया जा सकता है न...
    किसी नाजनीन को ऐसे मन करना अच्छी बात नहीं है...
    हाँ नहीं तो...!

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  3. नमकीन के लिए तो ब्लड प्रेशर का बहाना ज्यादा उचित रहता ..


    :):) बहुत बढ़िया हास्य

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  4. बहुत ही हसीन, ताज़ा तरीन ,नमकीन ,बेहतरीन और नवीन रचना ..... पढ़कर बड़ा अच्छा लगा :)

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