Saturday, September 25, 2010

' यूँ ! ' - शायरी करने का नुस्ख़ा (हास्य कविता) ! ( Hasya Kavita - Majaal )

वो पूछते है हमसे,
शायरी करने का नुस्ख़ा,
वाकिफ तो हम मगर,
उन्हें समझाएँ  कैसे,
" कि ' यूँ ' ! "

लफ़्ज़ों से ज्यादा,
मायने रखता है लहज़ा,
कि आप कहे " ऐसे ",
और हम कहें,
" कि ' यूँ ' ! "

कभी कभी एक बात के,
मतलब निकले कई,
कि हमने कहा " वैसे "
और वो समझें,
" कि 'यूँ' ! " 

हो खुदा भी परेशान,
कमबख्त क्या कह गया ?!
ऐसी शायरी भला,
जनाब करें क्यूँ ?

बाद हफ्ते देखो और,
सोचो  ' लिखा ही क्यों ? '
'मजाल' लिखिए जरूर,
मगर न लिखिए ' यूँ ! '  

5 comments:

  1. यूँ कि ..अब लिख ही दिया है तो पढ़ भी लिया ....बढ़िया लगी रचना ..

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  2. अब सोच में पड़ गये है कि
    वाह वाह ऐसे कहें या कहें कि यूं..

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  3. मजाल है किसी की जो लिख सके यूँ !

    हा हा हा हा हा

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  4. क्या पता हो शायरे आज़म का अब कैसा मिजाज़
    हम कहें कि हाल क्या है वो कहें बस 'यूं' ही हूं

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  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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