Friday, September 24, 2010

'बंटी की बज गयी घंटी !' बाल कविता (हास्य) ( Bal Hasya Kavita - Majaal )

एक दिन बंटी,
खेल रहा था अंटी,
पिताजी ने देखा,
मार दी डंडी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब न खेलेगा अंटी !

एक दिन बंटी,
जाता था पगडंडी,
पगडंडी में बंटी को,
दिख गयी फंटी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब रोज जाता पगडंडी !

बंटी गया मंडी,
ख्यालों में थी फंटी,
चवन्नी की चीज़,
खरीद ली अठन्नी,
माताजी को बताया,
पड़ गयी चमटी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब न मंडी, न फंटी !

एक दिन बंटी,
लेने तेल अरंडी,
दाम न चुकाए,
दुकानदार बना  चंडी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब न करता बेमंटी  !

एक दिन बंटी,
पीने गया शिकंजी,
आईने में देखा,
समझा खुद को  तोप  तमंची,
पहलवान से भिड़  गया,
उसने दो तीन जड़ दी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब न बनता घमंडी !

एक दिन बंटी,
खेलता था धुलंडी,
रंग गया आँख  में,
दो दिन तक अंधी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब न रंग, न धुलंडी !

बड़ा हुआ बंटी,
अब रहा न सनकी,
सबका  प्यारा बंटी,
राज दुलारा बंटी,
समय रहते उसकी,
अब बज जाती है घंटी,
इसलिए अब बंटी,
न करता कुछ अंड बंडी !

9 comments:

  1. अरे वाह बज गई बंटी की घंटी .... बहुत सुन्दर बाल रचना.... बधाई.

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  2. 'बंटी की बज गयी घंटी !'
    ...सुंदर बाल गीत।

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  3. खूब घंटी बजा दी बंटी की ...:):)

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  4. बहुत सुन्दर बाल रचना|

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  5. बिलकुल बच्चों जैसी मासूम रचना ..........

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  6. उम्मीद है कि बंटी अब ब्लॉग लिख रहा होगा :)

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  7. अब बंटी ने लिखा कुछ ढंग की

    अब नहीं बजेगी उसकी घंटी

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