Saturday, October 2, 2010

लाल बत्ती, हरी बत्ती - हास्य कविता ( Hasya Kavita - Majaal )

लाल बत्ती पर हमारी गाड़ी रुकी हुई थी,
सामने थी एक हसीना,
नज़रे उसी पर गढ़ी हुई थी,
थोड़ी महोलत थी, तो निभा रहे थे,
अधूरे ही सही, दिल में मंसूबे बना रहे थे !

तभी पीछे से एक स्कूटी वाला आया,
कट मारा ऐसा,
खुदा ने ही  बाल बाल बचाया,
हमने देखा आसमान की तरफ,
तो मानो सूरज मुस्काया,
"क्यों बच्चू, और टापेगा? अब मज़ा आया ?!"

पट्ठे को शायद, कुछ ज्यादा ही जल्दी थी,
जरूरत से ज्यादा जोश दिखाया.
न देखा आव, न ताव ,
पूरी रफ्त्तार में स्कूटी  भगाया,
आगे बत्ती  पर रुका था एक पहलवान मुस्टंडा,
उसको टकराके, गिराते हुए,
स्कूटी  वाला  भाई, आगे निकल आया !

पहलवान भाई पहले संभाला, फिर गुर्राया,
"ओं तेरी की ! रूक !", पूरी रफ़्तार से,
अपनी फटफटिया को, स्कूटी के पीछे दौड़ाया,
पीछा कर उसको दबोचा, और जड़ दिया घूँसा,
स्कूटी  वाले जनाब को, उनके  हेलमेट  ने,
जहाँ तक संभव हो सका, बचाया !

बाईक  पटकी एक तरफ फिर,
और गालियों का ताँताँ  लगाया,
एक से बढ़  के एक चुनिन्दा सुनाई,
गोया मस्तराम ने ग़ालिबाना अंदाज़ पाया !

अब एक तरफ सीकिये की सिफारिश ,
दूसरी तरफ पहलवान की बदले की रट,
एक तरफ पिद्धि स्कूटी,
दूसरी तरफ भयंकर बुललल्लट !
हमने सोचा, आज तो लग गयी,
स्कूटी वाले भैया की नैया  तट !

सब लोगों की उत्सुकता भी बढ़ गयी थी,
मुफ्त की फिल्म थी, सबने  टिकट कटवाया !
पर बेचोरों का मज़ा किरकिरा हो गया,
जोहीं स्कूटी वाले ने अपना हेल्मट हटाया,
" ओए  बिट्टू तू !!! ", स्कूटी वाला चिल्लाया !
कमबख्त   किस्मत हो तो ऐसी,
बुलटिया पहलवान सींकिया का,
पुराना लंगोटिया निकल आया !

अब तो नजारा ही बदला हुआ था,
प्यार की प्यार उमड़ रहा था,
पहलवान का चेहरा ख़ुशी और शर्मिंदगी के,
विचित्र मिश्रण से चमक रहा था !

शर्मिंदगी कुछ ज्यादा पनपती दिखी,
शायद सोच रहा था,
भाई पे खांमखां हाथ उठाया,
जो कर लेता थोडा इंतज़ार,
तो बला खुद ब खुद टल जाती,
कितनी देर टिकती आखिर,
गुस्से की लाल बत्ती,
थोडा सब्र करते 'मजाल' ,
तबीयत और बत्ती,
दोनों अपने आप हरी हो जाती !

जिंदगी के अन्दर एक अजीब सी  बेकरारी है,
अन्दर घुटती है, बेकाबू हो जाती है,
जो लगता प्यार,  और कभी दिखता  है फसाद,
वो दरअसल है,
फ़क्त,
दबी हुई खवाहिशें जिस्म की ,
जो बाहर आना चाहती हैं,
जीना चाहती है खुद को,
थोड़ी ताज़ी हवा खाना चाहती है   ....

इसलिए कहते है जनाब,
जिंदगी को जरा करीब से आजमाइए,
हर पहलवान में, छुपा है एक 'बिट्टू',
उसको जरा उभार कर लाइए !
गोली मारनी है तो, मारिये  फसाद को,
और सुकूँ की ताउम्र कैद का लुत्फ़ उठाइये !

तो सौ बात की एक बात,
जब हो अरमानों की तादाद,
और तय न कर पाएँ आप,
बीच प्यार या फसाद,
तो गले मिलिए हजूर,
कीजिये खाक रंजिश को,
नतीजा 'मजाल',
सोचते रहिएगा बाद !

9 comments:

  1. इसलिए कहते है मियाँ 'मजाल',
    जिंदगी को जरा करीब से आजमाइए,
    हर पहलवान में, छुपा है एक 'बिट्टू',
    मज़ा आ गया

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  2. जिंदगी को जरा करीब से आजमाइए,
    हर पहलवान में, छुपा है एक 'बिट्टू',

    घर जा रहे हैं तो घर जाईए
    लालबत्ती पर न हो जाईए लट्टू

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  3. सड़कों पर हसीनाओं से सलामत ही रखे ख़ुदा.

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  4. बेहद अर्थपूर्ण !

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  5. इसलिए कहते है मियाँ 'मजाल',
    जिंदगी को जरा करीब से आजमाइए,
    हर पहलवान में, छुपा है एक 'बिट्टू',
    बहुत गहरे भाव छुपे हैं कविता मे। पहलवान की इतनी मजाल? वाह भाई मजाल क्या बात कही। बधाई।

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  6. बहुत ही भावपूर्ण रचना ....
    मजा आ गया पढ़कर
    प्रस्तुति के लिए बधाई

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  7. :):) बढ़िया है ...सीख भी दे डाली ..

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  8. मजा आ गया पढ़कर
    प्रस्तुति के लिए बधाई

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  9. इस रचना से आपका अच्छा दिल मालुम पड़ा भैया ! आभार !

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