वक़्त ही वक़्त है,
जिंदगी बड़ी कमबख्त है !
मिलना हो सुकूँ, तो मिले आज,
पड़ी जरूरत सख्त है !
ख़ुशी क्या ? ग़म है क्या ?
बस ख़याल हीं तो फक्त है !
नाम नवाब , और काम गुलाम,
मामला पेचीदा, ताजो-तख़्त है !
और क्या ढूंढें 'मजाल' ?
बस खुदी की शिनख्त है !
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (4/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
लाजवाब !
ReplyDeleteवाह वाह बहुत ख़ूब
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
ReplyDeleteब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteबड़ा ही सूफियाना ख्याल है ! मुबारक हो !
ReplyDeleteख़ुशी क्या ? ग़म है क्या ?
ReplyDeleteबस ख़याल हीं तो फक्त है !
बहुत सही कहा ..
excellent!
ReplyDeletehttp://liberalflorence.blogspot.com/
और क्या ढूंढें 'मजाल' ?
ReplyDeleteबस खुदी की शिनख्त है !
wah ...
bahut achhi rachna ... badhai ...
आपकी ग़ज़ल ख़ूबसूरत है, दो पंक्ति मैं भी जोड़ना चाहूंगा-
ReplyDeleteउसे भी होता है दर्द,
वह जो एक दरख़्त है।