Sunday, October 3, 2010

वक़्त ही वक़्त, जिंदगी कमबख्त ! ( Shayari - Majaal )

वक़्त ही वक़्त है,
जिंदगी बड़ी कमबख्त है !

मिलना हो सुकूँ, तो मिले आज,
पड़ी जरूरत सख्त है !

ख़ुशी क्या ?  ग़म है क्या ?
बस ख़याल हीं तो फक्त  है !

नाम नवाब , और काम गुलाम,
मामला पेचीदा, ताजो-तख़्त है !

और क्या ढूंढें 'मजाल' ?
बस खुदी की शिनख्त है !

9 comments:

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (4/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  2. लाजवाब !
    वाह वाह बहुत ख़ूब

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  3. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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  4. ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.

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  5. बड़ा ही सूफियाना ख्याल है ! मुबारक हो !

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  6. ख़ुशी क्या ? ग़म है क्या ?
    बस ख़याल हीं तो फक्त है !

    बहुत सही कहा ..

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  7. excellent!

    http://liberalflorence.blogspot.com/

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  8. और क्या ढूंढें 'मजाल' ?
    बस खुदी की शिनख्त है !
    wah ...

    bahut achhi rachna ... badhai ...

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  9. आपकी ग़ज़ल ख़ूबसूरत है, दो पंक्ति मैं भी जोड़ना चाहूंगा-

    उसे भी होता है दर्द,
    वह जो एक दरख़्त है।

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