मोटूराम ! मोटूराम !
दिन भर खाते जाए जाम,
पेट को न दे जरा आराम,
मोटूराम ! मोटूराम !
स्कूल जो जाए मोटूराम,
दोस्त सताए खुलेआम,
मोटू, तू है तोंदूराम !
हमारी कमर, तेरा गोदाम !
तैश में आएँ मोटूराम !
भागे पीछे सरेआम,
पर बाकी सब पतलूराम !
पीछे रह जाएँ मोटूराम !
रोते घर आएँ मोटूराम,
सर उठा लें पूरा धाम,
माँ पुचकारे छोटूराम,
मत रो बेटा , खा ले आम !
जब जब रोतें मोटूराम,
तब तब सूते जाए आम,
और करें कुछ, काम न धाम,
मुटियाते जाएँ मोटूराम !
एक दिन पेट में उठा संग्राम !
डाक्टर के पास मोटूराम,
सुई लगी, चिल्लाए ' राम' !
' राम, राम ! हाए राम !'
तब जाने सेहत के दाम,
अब हर रोज़ करें व्यायाम,
धीरे धीरे घटा वज़न,
पतले हो गए मोटूराम !
मजाल जी , मजा आ गया
ReplyDeleteक्योंकि
मजाल की ही मजाल है कि मजाल के आगे किसी की मजाल नहीं कि मजा ले ले कर मजा ले सके और मजा दे सके !
मोटूराम अच्छी बाल कविता है जी
पतले हो'कर भी बेचारे रहे मोटूराम ही हा हा हा
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bal kavita ka apna hi anand hai....sadhuwad....
ReplyDeletebal kavita ka apna hi anand hai....sadhuwad....
ReplyDeleteBahut mazedaar! Aur kuchh mote bachhon ke liye hitprad bhi!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...हर रंग में रंगे हैं आप ..
ReplyDeleteअच्छी खासी खाती पीती कविता है ! पर किसी की मजाल है जो सुई लगा जाये !
ReplyDeleteमुझे लगा कि यह कहीं मुझ पर तो नहीं लिख दी तैश में आ गया ....डॉ पास नहीं जाना !
ReplyDeleteआखिर में रास्ता तो बता दिया थैंक यू भैया !
इतनी मजाल कि हमे सुना रहे हो। हम तो मोटे ही रहेंगे । मगर सब से आगे\ हा हा हा। बडिय़ा बधाई
ReplyDeleteकृ्प्या मेरा ये ब्लाग भी देखें
http://veeranchalgatha.blogspot.com/
धन्यवाद।
awesum!!!! kavita
ReplyDelete