वाह साहिब !
क्या मुश्किल आपकी !
क्या विकट स्तिथि, क्या भरम ?!
शुरू करें मीठे से,
या चखे पहले खमण !
रसगुल्ला न गटका,
तो क्या दावत उड़ाई ?!
डाईबटीस जाए भाड़ में,
थोड़ी सी रसमलाई !
मियां 'मजाल' रह रह कर,
दिमागी अटकलों में उलझ जाएँ ,
शाही पनीर आजमाए,
या कोरमे पर शौक फरमाए !
न छोड़ी नान,
और तंदूरी रोटी भी खाई,
पेट ने डकार मार दिया संदेसा,
पर थे अपनी धुन में भाई !
इमरती नरम,
गुलाब जामुन,
गरमा गरम !
माल-ए-मुफ्त,
दिल-ए-बेरहम !
सूते जाईये 'मजाल',
समझ के, खुदा का करम !
कॉफ़ी की भी मारी चुस्कियाँ,
कोका कोला भी पेट में उड़ोला !
ठंडे , गरम का न किया लिहाज़,
भाई ने किसो को नहीं छोड़ा !
समापन समारोह में भी,
तबीयत कब शरमाई ?!
पान भी चबा गए कई,
शिकंगी भी खूब भराई !
सोचा था हजूर ने,
मौका है न गवाओं,
एक सौ एक का,
लिफ़ाफ़ा थमाया है,
कम से कम दौ सौ का तो,
माल उड़ाओ!
पर किस्मत ने करी चोट,
तबीवत ने दिखाई चतुराई !
अगले दिन सुबह सुबह ,
पेट ने दी दुहाई !
पार्टी में वसूली का,
नुस्खा न काम आया,
डाक्टर ने अलग से,
घुसेड़ा इंजेक्शन,
दवा ने अलग,
अपने वास्ते ,
पाँच सौ एक का,
शगुन लगवाया !
अंकल जी आप तो खूब मजेदार लिखते हैं ...हा..हा..हा..मेरे ब्लॉग पर भी आप आना.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!!
ReplyDelete2/100
ReplyDeleteटाईम पास
हा..हा..हा..
ReplyDelete..इस कविता में गुदगुदाने वाला हास्य और चिढ़ाने वाला व्यंग्य है। कभी न कभी तो सभी इसके शिकार हुए होंगे मगर बात तब बनी जब हास्य-व्यंग्य के कवि ने दावत उड़ाई। स्वीकार करें हमारी बधाई।