Tuesday, October 26, 2010

शायरी - ' कौन पाले ये रोग खाँमखाँ ....' ( Shayari - Majaal )

आधी उम्र  गुज़री, करने में बचत,
बची हुई, करने में उसकी हिफाज़त !

जब मालूम हुआ , तो हुई न हैरानगी,
कटे जिस्म से, पाया गया दिल नदारद !

रिश्तों को निभाने में, सब समझ गयी,
सहीं हों या गलत, बस कीजे वकालत !

हम मालिक एक घर के, हमारी ये गत !
तू मालिक जहाँ का, तेरी क्या हालत !!

'मजाल' पाले खाँमखाँ   ये रोग क्यों ?
ये तख्तो-ताज आपको, बहुत है मुबारक !

9 comments:

  1. वाह वाह वाह

    आधी जिंदगी गई सपने देखने में और बाकि की आधी गई उसे टूटते हुए देखने में |

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  2. आधी उम्र गुज़री, करने में बचत,
    बची हुई, करने में उसकी हिफाज़त !
    bahut badi baat keh di..majaal hai ki hum uff kar jayen!

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  3. 4.5/10

    औसत पोस्ट
    पढ़ी जा सकती है

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  4. आप सभी का ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार ....

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  5. आज तो अंशुमाला जी के साथ :)

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  6. आज तो अंशुमाला जी के साथ :)

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