तुझे पाने की हसरत लिए,
हमें एक जमाना हो गया !
नयी नयी शायरी,
करते तेरे पीछे,
देख मैं शायर कितना,
पुराना हो गया !
मुए इस दिल को,
संभालना पड़ता है,
हर वक़्त !
दिल न हुआ गोया,
बिन पजामे का,
नाड़ा हो गया !
मरज में न फरक,
तोहफों में खरच अलग !
इलाज में खाली सारा,
अपना खज़ाना हो गया !
दिल दर्द से भरा,
और जेबें खाली !
ग़म ही इन दिनों,
अपना खाना हो गया !
मुद्दतें हो गयी ,
रोग जाता नहीं दिखता,
अस्पताल ही अब अपना,
ठिकाना हो गया !
तू भी तो बाज़ आ कभी ,
इश्कियापन्ती से 'मजाल'
पागल भी देख तुझे,
कब का सयाना हो गया !
bahut khoob.........shandar
ReplyDeletegud
ReplyDeleteवाह वाह वाह वाह वाह वाह क्या खूब कही है
ReplyDeleteवाह …………बहुत खूब्।
ReplyDelete5/10
ReplyDeleteहास्य बिखेरती पोस्ट
बढ़िया है ...
कई पंक्तियाँ गुदगुदाती हैं :
"पागल भी देख तुझे,
कब का सयाना हो गया"
vaah...bahut khoob...
ReplyDeleteआप सभी का ब्लॉग पर पधारने के लिए शुक्रिया ....
ReplyDeleteमजाल जी ऐसे पागल कहाँ सयाने होते हैं बच कर रहेंइस बीमारी से। शुभकामनायें।
ReplyDeleteतो फिर आज से सारे सयानों को ...? समझें :)
ReplyDeleteबहुत बुरा हाल हो गया..खुदा खैर करें....बढ़िया एवं मजेदार कविता..बधाई
ReplyDeleteहर एक शब्द कुछ कहता है...
ReplyDeleteसिर्फ एक शब्द........
मजेदार........
“दीपक बाबा की बक बक”
प्यार आजकल........ Love Today.