Wednesday, October 27, 2010

' इश्कियापन्ती ' : हास्य-कविता ( Hasya Kavita - Majaal )

तुझे पाने की हसरत लिए,
हमें एक जमाना हो गया !
नयी नयी शायरी,
करते तेरे पीछे,
देख मैं शायर कितना,
पुराना हो गया !

मुए इस दिल को,
संभालना पड़ता है,
हर वक़्त !
दिल न हुआ गोया,
बिन पजामे का,
नाड़ा हो गया !

मरज में न फरक,
तोहफों में खरच अलग !
इलाज में  खाली सारा,
अपना  खज़ाना हो गया  !

दिल दर्द से भरा,
और जेबें खाली !
ग़म ही इन दिनों,
अपना खाना हो गया !

मुद्दतें हो गयी ,
रोग जाता नहीं दिखता,
अस्पताल ही अब अपना,
ठिकाना हो गया !

तू भी तो बाज़ आ कभी ,
इश्कियापन्ती  से 'मजाल'
पागल भी  देख तुझे,
कब का सयाना हो गया !

11 comments:

  1. वाह वाह वाह वाह वाह वाह क्या खूब कही है

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  2. वाह …………बहुत खूब्।

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  3. 5/10

    हास्य बिखेरती पोस्ट
    बढ़िया है ...
    कई पंक्तियाँ गुदगुदाती हैं :
    "पागल भी देख तुझे,
    कब का सयाना हो गया"

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  4. आप सभी का ब्लॉग पर पधारने के लिए शुक्रिया ....

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  5. मजाल जी ऐसे पागल कहाँ सयाने होते हैं बच कर रहेंइस बीमारी से। शुभकामनायें।

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  6. तो फिर आज से सारे सयानों को ...? समझें :)

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  7. बहुत बुरा हाल हो गया..खुदा खैर करें....बढ़िया एवं मजेदार कविता..बधाई

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  8. हर एक शब्द कुछ कहता है...
    सिर्फ एक शब्द........
    मजेदार........



    “दीपक बाबा की बक बक”
    प्यार आजकल........ Love Today.

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