ना बुरा हुआ, ना बढ़िया हुआ,
हुआ वही, जो नज़रिया हुआ !
औरों के लिए, हुई वो मातम,
बीमार तो मरा, और रिहा हुआ !
बच्चा खुश, की सबकुछ है नया ,
बूढ़ा परेशां, 'है सब किया हुआ !'
नाउम्मीदी को सूरज में लगे अँधेरा,
उम्मीद को काफी, एक दिया हुआ !
रुकने वाला रुकेगा इंसानियत पर ,
बढ़ने वाला, सुन्नी हुआ, शिया हुआ !
हमें तो मतलब, उम्दा नीयत से,
हुआ बाहमन , या मियाँ हुआ !
रोने से फुर्सत, तब देखे आँखे,
मालिक ने कितना दिया हुआ !
जो हुआ, वो हुआ, की होना वही था,
क्या सोचना 'मजाल', ' ये क्या हुआ' ?!
वाह !!
ReplyDeleteकविता मुझको समझ ना आयी ........कर रहा हूँ समझने की पढ़ाई !
अच्छी गजल/कविता..
ReplyDeleteनाउम्मीदी को सूरज में लगे अँधेरा,
ReplyDeleteउम्मीद को काफी, एक दिया हुआ !
रुकने वाला रुकेगा इंसानियत पर ,
बढ़ने वाला, सुन्नी हुआ, शिया हुआ !
हमें तो मतलब, उम्दा नीयत से,
हुआ बाहमन , या मियाँ हुआ !
वाह वाह क्या खूब कहा। लाजवाब। बधाई।
tin bar wahwah wahwah wahwah
ReplyDeleteअच्छी गजल!
ReplyDeleteआप सभी का ब्लॉग पर पधारने के लिए शुक्रिया ....
ReplyDeleteबच्चा खुश, की सबकुछ नया है,
ReplyDeleteबूढ़ा परेशां, 'है सब किया हुआ !'
नाउम्मीदी को सूरज में लगे अँधेरा,
उम्मीद को काफी, एक दिया हुआ !
बहुत बढ़िया ....अच्छी गज़ल
सब कुछ बढिया पर अपनी पसन्द ये रही ...
ReplyDeleteहमें तो मतलब, उम्दा नीयत से,
हुआ बाहमन , या मियाँ हुआ !
:)