"बिकी हुई दवाई,
नहीं होगी वापस भाई,
न कोई अदल-बदल,
और ना ही,
कोई और दखल !
कृपया दवाई उतनी ही लें,
जिंतनी की चाहिए,
इस तरह अपना मूल्य,
और समय अमूल्य,
दोनों को बचाइये ! "
कहने को एक तख्ती थी लकड़ी की,
जिस पर टंगा था एक विचार,
पर जो इस विचार पर किया जाए विचार,
तो पाइएगा मियाँ 'मजाल',
की छुपा हुआ है इसमें,
कितनें ही सालों का अनुभव,
किसी की जिंदगी का,
पूरा सार !
इस तरह अपना मूल्य,
ReplyDeleteऔर समय अमूल्य,
दोनों को बचाइये ! "
बहुत खूब आपने ने छोटीसी बात में जिन्दगीका सर दे दिया है !
‘किसी की जिदगी का पूरा सार‘
ReplyDeleteसार्थक पंक्तियां।
दवाई कौन खाना चाहता है,
ReplyDeleteअपने पैसे बरबाद करना कौन चाहता है..
nicely conveyed message!
ReplyDeletesaarthak sandesh...sundar kavita.
ReplyDeleteप्रतिक्रियाओं के लिए आप सभी का आभार ....
ReplyDeleteअच्छा सन्देश देती रचना ..
ReplyDelete1/10
ReplyDeleteआपको अब पोस्ट पढने के लिए कुछ पैसा भी पाठकों को देना चाहिए ... ऐसे नहीं चलेगा
क्या बात है बिल्कूल सही कहा |
ReplyDeleteमुझे तो पोस्ट ठीक ही लगी अब ये उस्ताद जी क्यों खफा हैं आपसे :)
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