कमज़ोर हो के ढह जा,
गुरूर उस ज गह जा !
बदजुबानी से तो अच्छा,
चुप रहके थोड़ा सह जा !
तुझसे बहुत पटती है,
फुर्सत तू संग ही रह जा !
मरज़ करता रुका पानी,
आँसू तू बेहतर बह जा !
तेरा क्या बुरा मानें ?
उम्दा नीयत है, कह जा !
ख़ुशी और ग़म बराबर,
अरमानों की जो तह जा !
'मजाल' सच कब कड़वा ?
कड़वा होता बस लह जा !
"ख़ुशी और ग़म बराबर,
ReplyDeleteअरमानों की जो तह जा !
'मजाल' सच कब कड़वा ?
कड़वा होता बस लह जा"
वाह भाई, अंजाम की क्या फ़िक्र.
कहना जरूरी है तो, बस कह जा।
बदजुबानी से तो अच्छा,
ReplyDeleteचुप रहके थोड़ा सह जा !
मरज़ करता रुका पानी,
आँसू तू बेहतर बह जा !
ख़ुशी और ग़म बराबर,
अरमानों की जो तह जा !
वाह...वाह...वाह...छोटी बहर में क्या कमाल के शेर कहें हैं...किसकी मजाल है जो इस गज़ल को लाजवाब न कहे, बेमिसाल न कहे,...आपने जो किया उसे सिर्फ कमाल ही कहा जा सकता है. लिखते रहें.
नीरज
अरे वाह!
ReplyDeleteआप सभी का चिट्ठा पढ़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ....
ReplyDeleteसब्र-ओ-रवानगी पर बहुत बेहतर ख्याल हैं !
ReplyDeletejabardast likha hai aapne.......shabdo ka bilkul sahi prayog.wah
ReplyDeleteबदजुबानी से तो अच्छा,
ReplyDeleteचुप रहके थोड़ा सह जा !
बहुत खूबसूरत गज़ल है ....
बदजुबानी से तो अच्छा,
ReplyDeleteचुप रहके थोड़ा सह जा !
मजाल' सच कब कड़वा ?
कड़वा होता बस लह जा !
बहुत अच्छी लगी आपकी ग़ज़ल ... हर शेर में गहरी बात छुपी है ...
बदजुबानी से तो अच्छा
ReplyDeleteचुप रहके थोड़ा सह जा।
बहुत ही फलसफाना शे‘र...लाजवाब।
वाह! बहुत बेहतर, खूबसूरत गज़ल है
ReplyDeleteतेरा क्या बुरा मानें ?
ReplyDeleteउम्दा नीयत है, कह जा !
waah!!!
bahut sundar kathya!!!
regards,
'मजाल' सच कब कड़वा ?
ReplyDeleteकड़वा होता बस लह जा ..
वाह जनाब .. क्या बात है ... छोटी बहर में कमाल किया है ... लह जा ... बहुत खूब ...
"मरज़ करता रुका पानी,
ReplyDeleteआँसू तू बेहतर बह जा !"
जिंदगी के सच को उकेरती, भाव प्रवण रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बहुत सुन्दर शेरो शायरी और आप की रचनाएँ मन को बहुत भायीं धन्यवाद हमारे प्रिय बद्री जी का जिनके द्वारा हम आप से भी जुड़े शुभ कामनाये ई चर्चा को और आप को साधुवाद
ReplyDeleteसुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५