Thursday, November 11, 2010

शायरी : वो हमसे कुछ ख़ास नहीं मिले, लगता है, अहसास नहीं मिले ! (Shayari - Majaal)

वो हमसे कुछ ख़ास नहीं मिले,
लगता है, अहसास नहीं मिले !

और दिनों मिलते थे जैसे,
वैसे हमसे आज नहीं मिलें !

इंसा और जानवर का फासला,
तबीयत, कभी हालात नहीं मिले !

कोई तलाशे, बादे मौत ज़िन्दगी,
किसी को, आगाज़ नहीं मिले !

सभी ने हाँकी अपने मन से फकत ,
किसी को पर, वो राज़ नहीं मिले !

कितनों में छुपे, मीर ग़ालिब 'मजाल',
बस सोच को, अल्फाज़ नहीं मिले !

6 comments:

  1. कितनों में छुपे, मीर ग़ालिब 'मजाल',
    बस सोच को, अल्फाज़ नहीं मिले !

    बिल्कुल हमें भी नहीं मिलते...

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  2. jab soch ko alfaj mil jaate hain..majaal ban jaataa hai...bahut badhiya.

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  3. कितनों में छुपे, मीर ग़ालिब 'मजाल',
    बस सोच को, अल्फाज़ नहीं मिले !
    ..क्या अल्फाज पाया है..वाह! बिलकुल यही बात!
    ....सोच को अल्फाज नहीं मिले गालिब
    वरना हम भी आदमी थे काम के।

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  4. बहुत सुन्दर, आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है!

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  5. "कोई तलाशे, बादे मौत ज़िन्दगी,
    किसी को, आगाज़ नहीं मिले ! "
    भाई, रजा मुराद याद आ रहे हैं हमें.....
    जीने की आरज़ू में रोज........
    ............जिये जा रहा हूँ मैं।
    Am I right?

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  6. आप सभी का प्रतिक्रियाओं के लिए आभार ....

    राजा मुराद साहब का तो बस चेहरा ही याद है संदीप भाई, बाकी मजालिया खोपड़ी भिड़ा कर dialogue (monologue rather ! ) पढ़े तो चीज़ तो बड़ी जोरदार मालूम होती है ... ;)

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