हमारे मित्र,
देखने प्रदर्शनी चित्र,
दिन रविवार,
सपरिवार.
सामने चित्र,
स्थिति विचित्र,
मित्र सोचे, 'वाह ! क्या चित्रकारी ! ',
उनकी बीवी सोचे, 'वाह ! क्या साड़ी ! '
छोटा बच्चा सोचे, ' वाह ! क्या गाड़ी ! '
बड़ा वाला सोचे, ' वाह ! क्या नारी !'
एक ही दुनिया में,
मौजूद रंग कितने,
है सबने पाई,
अपनी अलग नज़र,
अपनी अपनी समझदारी.
बनाने वाले ने खूब बनाई,
तस्वीर-ए-बेमिसाल,
दाद दीजिये 'मजाल',
ऊपरवाले की कलाकारी !
:) :) सही में कलाकारी
ReplyDeleteहा हा हा…………सबका अपना अपना नज़रिया है…………गज़ब्।
ReplyDeleteha ha ha..sab ऊपरवाले की कलाकारी ! hai.
ReplyDeleteजी हा सभी का अपना नजरिया है भगावन की कोई एक कलाकारी किसी को अच्छी तो किसी को बुरी लगती है |
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर .......।
ReplyDeleteआप सभी लोगों का ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार ....
ReplyDeleteजाकि रही भावना जैसी
ReplyDeleteप्रभु मूरत देखि तिन तैसी
सुन्दर रचना!
कुदरत से बडा कलाकार कोई नहीं ! बाकी सबका अपना नज़रिया !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कलाकारी..
ReplyDeleteसही कहा भाई, सबकी अपनी नजर और सबका अपना नजरिया।
ReplyDelete