Tuesday, November 9, 2010

शायरी : ' जाने कैसा गुज़रना है साल ये ? अभी से है हजूर के जब हाल ये ! ' (Shayari - Majaal)

जाने कैसा गुज़रना है साल ये ?
अभी से है हजूर के जब हाल ये !

क्या, क्यों, किसलिए, सुलझे तो कैसे ?
जवाबों से ही निकलते  सवाल ये !

दो पागल, और दोनों बराबर !
ख़त्म नहीं होता दिखे बवाल ये !

बात तब बने, जब मकम्मल हो वर्ना,
पल में गायब हो जाते  ख़याल ये !

चार दिन हुए नहीं महफ़िल सजाए,
इनके तेवर तो देखिये,  मजाल ये !

9 comments:

  1. :-) वाह! ज़बरदस्त.

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  2. चार दिन हुए नहीं महफ़िल सजाए,
    इनके तेवर तो देखिये, मजाल ये !
    बहुत खूब। बधाई।

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  3. क्या, क्यों, किसलिए, सुलझे तो कैसे ?
    जवाबों से ही निकलते सवाल ये !
    ...jabaradast.

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  4. अपनी पसंद :)

    बात तब बने, जब मकम्मल हो वर्ना,
    पल में गायब हो जाते ख़याल ये !

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  5. आप सभी का ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार ....

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  6. क्या बात है भाई...बहुत खूब...वाह...

    नीरज

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  7. दो पागल, और दोनों बराबर..
    पागल हैं तो बराबर नहीं होंगे !!!
    :-))

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  8. दो पागल, और दोनों बराबर..
    पागल हैं तो बराबर नहीं होंगे !!!
    :-))

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