एक बार हुआ यूँ,
की ग़ालिब सोचे,
कुछ यूँ,
क्या हो अगर,
हो यूँ,
और न यूँ !!
अब जब ग़ालिब,
सोचे यूँ,
तो हुआ यूँ,
की यूँ से मिला यूँ,
कुछ यूँ,
की पता न चला,
ये यूँ, यूँ,
या ये यूँ, यूँ !!
क्योंकिं,
ये यूँ,
ही है,
कुछ यूँ,
की जो सोचने लगो,
यूँ या यूँ,
तो,
यूँ ही यूँ में,
निकलते जाते,
यूँ पे यूँ !
यूँ पे यूँ !!
ग़ालिब पहले परेशान,
यूँ,
या,
यूँ !
अब नई परेशानी,
की ये यूँ, यूँ,
या ये यूँ, यूँ !!
चेहरा-ए-ग़ालिब,
कभी यूँ,
और,
कभी यूँ !!
इसलिए कहे 'मजाल',
ग़ालिब,
आप सोचे ही क्यूँ,
यूँ ? !!!
हा हा हा,
ReplyDeleteयूँ कि गालिब यूँ न सोचे तो एक शेर और कम हो जाता न?
हुई मुद्दत कि गालिब मर गया,
पर अब भी याद आता है
वो हरइक बात पर कहना
कि .. होता तो क्या होता।
मस्त लिखी है मजाल भाई, शुद्ध नहीं बल्कि विशुद्ध है, यूँशुद्ध है:)
यूँ मुझ को ये ख्याल आया
ReplyDeleteकी आप को ऐसे ख्याल आते है क्यूँ
आगे कुछ बन नहीं रहा यूँ
तो और कुछ कहू क्यूँ
आप लोगो का ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार ....
ReplyDeleteमजाल, काफी अच्छा लिखा है आपने.. खूब घुमाया ग़ालिब को भी , याद करेगा किसी मजाल से भी पला पड़ा था ..यूँ |
ReplyDeleteएक ही कविता में 32 बार ‘यूं‘ का प्रयोग ? एक दांत के लिए एक यूं, चचा गा़लिब के सारे दांत खटटे कर दिए आपने ...वाह मजाल जी...बहुत खू़ब..
ReplyDeleteएक ही कविता में 32 बार ‘यूं‘ का प्रयोग ? एक दांत के लिए एक यूं, चचा गा़लिब के सारे दांत खटटे कर दिए आपने ...वाह मजाल जी...बहुत खू़ब..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...कुछ नहीं होकर भी सब कुछ कह दिया इस कविता में आपने....
ReplyDeleteन ख्याल न खवाब सिर्फ सब कुछ यूँ ही .....बेहतरीन.....
कभी समय मिले तो कोशिश कीजियेगा मेरे हिंदी ब्लॉग पे आने की
आप से बहुत कुछ सीखना है.....भाषा का प्रयोग...अगर कही कोई गलती लगे तो बताइयेगा...
बड़ी मेहेरबानी होगी...
kuch yu chala sher'o ka silsila mehfile yaaro ke darmiyaa..
ReplyDeleteke bas.. 1433 hi bache maarne ke liye! lol!
nice lines! :)))