बहुत ही ऊँचें दाम की निकली,
चीज़ मगर वो काम की निकली !
शुरू किया आज़माना मुश्किल,
ज्यादातर बस नाम की निकली !
मौका मिला तो सरपट भागी,
ख्वाहिशें थी लगाम की निकली !
अँधेरा देखा उजाले में जब ,
सुबह भी दिखी शाम की निकली !
फ़िज़ूल-ए-फितूर हटा दे गर तो,
बाकी जिंदगी आराम की निकली !
महोब्बत से पाई जन्नत 'मजाल',
झूठी बातें ईमाम की निकली !
जिंदगी का यह तजुर्बा भी कमाल है !
ReplyDeleteबहुत ही ऊँचें दाम की निकली,
ReplyDeleteचीज़ मगर वो काम की निकली !
शुरू किया आज़माना मुश्किल,
ज्यादातर बस नाम की निकली !
मौका मिला तो सरपट भागी,
ख्वाहिशें थी लगाम की निकली !
क्या बात है सर !
बहुत ही ऊँचें दाम की निकली,
ReplyDeleteचीज़ मगर वो काम की निकली !
शुरू किया आज़माना मुश्किल,
ज्यादातर बस नाम की निकली !
मौका मिला तो सरपट भागी,
ख्वाहिशें थी लगाम की निकली !
क्या बात है सर !
'mohabbat se payee jannat mazal
ReplyDeletejhoothi baten imam ki nikli'
umda gazal.
ज़िंदगी की इतनी विस्तृत विवेचना ....
ReplyDeleteबहुत ही कमाल की शायरी
ReplyDeleteआप अभी लोगों का आभार ...
ReplyDeleteभैये कमाल की है..
ReplyDeleteवाह वाह एक एक लाइन बिल्कुल सही है |
ReplyDeleteशुरू किया आज़माना मुश्किल,
ReplyDeleteज्यादातर बस नाम की निकली !
कमाल की शायरी.....
महोब्बत से पाई जन्नत 'मजाल',
ReplyDeleteझूठी बातें ईमाम की निकली
अच्छा तजुर्बा है ....
महोब्बत से पाई जन्नत 'मजाल',
ReplyDeleteझूठी बातें ईमाम की निकली
लाख टके की एक बात...वाह...
नीरज
अपने सारे पैसे आख़िरी शेर पर !
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