Thursday, December 2, 2010

शायरी - तजुर्बा ( Shayari - Majaal )

बहुत ही ऊँचें दाम की निकली,
चीज़ मगर वो काम की निकली !

शुरू किया आज़माना मुश्किल,
ज्यादातर बस नाम की निकली !

मौका मिला तो सरपट भागी,
ख्वाहिशें थी लगाम की निकली !


अँधेरा   देखा उजाले में जब ,
सुबह भी दिखी शाम की निकली !

फ़िज़ूल-ए-फितूर हटा दे गर तो,
बाकी जिंदगी आराम की निकली !

महोब्बत से पाई जन्नत 'मजाल',
झूठी बातें ईमाम की निकली !

13 comments:

  1. जिंदगी का यह तजुर्बा भी कमाल है !

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  2. बहुत ही ऊँचें दाम की निकली,
    चीज़ मगर वो काम की निकली !

    शुरू किया आज़माना मुश्किल,
    ज्यादातर बस नाम की निकली !

    मौका मिला तो सरपट भागी,
    ख्वाहिशें थी लगाम की निकली !

    क्या बात है सर !

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  3. बहुत ही ऊँचें दाम की निकली,
    चीज़ मगर वो काम की निकली !

    शुरू किया आज़माना मुश्किल,
    ज्यादातर बस नाम की निकली !

    मौका मिला तो सरपट भागी,
    ख्वाहिशें थी लगाम की निकली !

    क्या बात है सर !

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  4. 'mohabbat se payee jannat mazal
    jhoothi baten imam ki nikli'

    umda gazal.

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  5. ज़िंदगी की इतनी विस्तृत विवेचना ....

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  6. बहुत ही कमाल की शायरी

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  7. आप अभी लोगों का आभार ...

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  8. वाह वाह एक एक लाइन बिल्कुल सही है |

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  9. शुरू किया आज़माना मुश्किल,
    ज्यादातर बस नाम की निकली !
    कमाल की शायरी.....

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  10. महोब्बत से पाई जन्नत 'मजाल',
    झूठी बातें ईमाम की निकली

    अच्छा तजुर्बा है ....

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  11. महोब्बत से पाई जन्नत 'मजाल',
    झूठी बातें ईमाम की निकली

    लाख टके की एक बात...वाह...

    नीरज

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  12. अपने सारे पैसे आख़िरी शेर पर !

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