Friday, December 3, 2010

कहानी - लाइसेंस

सौरभ RTO  में बैठा License का फॉर्म भरने में लगा था.
" साले , ये हरामी लोग, बिना पैसे खाए कोई काम नहीं करते", पास बैठा काली शर्ट पहना एक आदमी बडबडा रहा था.
"साला फॉर्म है की क्या.... जाने कैसे भरना है ....? साले ये हरामी लोग ....." वो बडबडाता जा रहा था. सौरभ हँसी दबा गया. सीधा सदा फॉर्म था. नाम , पता, फोटो, कुछ प्रमाण पत्र, ये सब जानकारी तो लगती ही है, " इसमें क्या अजीब है... ?!" उसने मन ही मन सोचा.
सामने खड़े आदमी की उस पर नज़र पड़ी. "साहब, बहुत झंझट है, बहुत चक्कर लगवाते है, बहुत लटकाते है, आप बोलो तो मैं ५०० में बैठे बैठे आपका काम करवा दूँ." 
थोड़ी बात चीत करने के बाद उस एजेंट ने  काली शर्ट वाले से ४०० में सौदा पटा  लिया. काली शर्ट वाला खुश की मोल भाव करके सौ रुपये बचा लिए !
"साहब,आप भी करवा लो.."
"नहीं, मैं खुद कर लूँगा..."
"अरे, बहुत झंझट है साहब...."
उसकी बात नज़रंदाज़ करता हुए सौरभ लाइन में लग गया.
" ये attest नहीं है, करवा ले लाओ" बाबू खडकी पर खड़े एक आदमी से बोल रहा था.
"देखा, साले ये हरामी लोग..." पास बैठे काली शर्ट वाले ने  फिर से दोहराया और सौरभ की तरफ अपनी बात की  सहमती पाने के लिए देखने लगा.
"Attest तो करवाना पड़ता है भाईसाहब, फॉर्म में साफ़ लिखा है,  जो तरीका है, वो है, क्या कर सकते है...." सौरभ के जबाब से उसे निराशा हुई ...!
"साले खांमखां परेशान करते है..."  वो व्यक्ति फॉर्म हाथ में लिए, गुस्से में बडबडाते हुए उन लोगों के सामने से निकला. काली शर्ट वाला अपना समर्थक पाकर खुश हुआ !
सौरभ का नंबर आया. फॉर्म पूरा ठीक से भरा था, सो रसीद कटवाई, और तीन दिन बाद license  ले जाने को कहा.
इसी तरह से उसका learning license भी बना था. अब तीन दिन में उसका परमानेंट भी बन जाएगा. सौरभ ये सोच कर खुश हुआ.
तीन दिन बाद वो license लेने RTO पहुँचा. लाइन में लगा, रसीद दिखाई , license लिया और ख़ुशी ख़ुशी चल दिया. बाहर जाते वक़्त उसे एक आवाज़ सुनाई दी "ये  साले बाबू लोग..." देखा तो एक आदमी फॉर्म भरने में उलझा हुआ था. शर्ट भी काली ! पास से गुज़ारा तो देखा  की वो कोई दूसरा आदमी था.
"कुछ समझ में नहीं आ रहा क्या?" सौरभ ने मदद करनी चाही, वो  अच्छे मूड में था.
"हाँ यार, ये फॉर्म , इतना सारा भरना है.... जाने क्या क्या है...."
"सीधा सा तो है, क्या नहीं आ रहा आपको ?"
"अरे, ये लोग सौ बातें भरवाते है फॉर्म में खांमखां ,परेशान न करे तो इनकी कमाई कैसे हो... खाए बिना  कुछ काम करते नहीं साले   "
"पर मेरे तो कर दिया !! "
"हूँ ...." काले शर्ट वाले ने उसकी बाते अनसुनी कर दी.
शक्ल तो पुराने वाले से नहीं मिल रही थी , पर आदमी ये सौरभ को वहीँ लगा !

14 comments:

  1. अपना कोई तजुर्बा इतना बढ़िया नहीं हुआ आजतक...

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  2. सही कहा है आओअने। लाइसेंस तो ऐसे ही मिलती है।

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  3. हा पर ऐसा किसी किसी ही सरकारी आफिस में होता है की आप का काम दो चक्कर में हो जाये ज्यादातर का तो इन दलालों से पूरी मीली भगत होती है बाबु का कमीशन भी होता है दलालों के पैसे में |

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  4. अच्छा सन्देश देती कहानी.

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  5. प्रतिक्रियाएँ देने के लिए आप सभी का शुक्रिया....

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  6. सुंदर उम्दा बेहतरीन

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  7. शायद दोनों तरफ की बातें सही है ...
    कहानी सुन्दर है !

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  8. कहानी सन्देश दे गयी ...और हमें सोचने पर मजबूर कर गयी ...शुक्रिया

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  9. लोंग स्वयं की परेशानी से बचने के लिए एजेंट से काम करवाते हैं ..रिश्वत ऐसेही नहीं पनप रही ..

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  10. मजाल साहब माफ कीजियेगा कहीं आप इस दफ्तर में काम तो नहीं करते :)

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  11. हम तो पैदाइशी बेरोजगार है अली साहब, समझिये किस्मत के ही मेवे खा रहे है ;)

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