बच के कहाँ जाओगी रानी !
हमसा कहाँ पाओगी रानी !
इतने दिनों से नज़र है तुझपे,
रोच गच्चा दे जाती है !
आज तो मौका हाथ आया है !
बस तुम हो और,
बस मैं हूँ, बस !
बंद अकेला और कमरा है !
इतने दिनों से सोच रहा हूँ,
अपने अरमां उड़ेल दूँ,
सारे तुझ पर ,
आज तू अच्छी हाथ आई है !
करूँगा सारे मंसूबे पूरे !
आज तो चाहे जो हो जाए,
छोड़ूगा नहीं,
ऐ सोच !
तुझे,
कविता बनाए बिना !!!
badhiya rachna
ReplyDeleteकमाल का व्यंग्य किया है भाई....सारे अरमान उड़ेल देने की बात कह दी आपने ...बहुत बढ़िया
ReplyDeletenice creation
ReplyDeleteकरूँगा सारे मंसूबे पूरे !
ReplyDeleteआज तो चाहे जो हो जाए,
छोड़ूगा नहीं,
ऐ सोच !
तुझे,
कविता बनाए बिना !!! ...vah..kyaa finish diya hai.badhiya.
कड़ कडाती ठण्ड में भी गच्चा दे रही है .... वाह क्या कहने जोरदार ... ठण्डठंडाती जोरदार पोस्ट ...
ReplyDeleteउसको अकेला पाके क्या गत बनाई आपने :)
ReplyDeleteहाय कविता अकेले में तेरा क्या हाल किया रे...
ReplyDeleteनीरज
आप सभी का आभार...
ReplyDeleteसच मे खुराफातों का संकल्न है ये। शुभकामनायें।
ReplyDelete:-))
ReplyDeleteवाह मजा आ गया. आज लिख डालिए बना डालिए कविता. ऐसी कविता से बंद कमरे का राज आज जाके पता चला है.
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