Wednesday, December 8, 2010

ग़ज़ल हो पूरी कैसे, दोपहर होने के पहले, सोच हो जाती रुखसत , बहर होने के पहले ! ( Shayari - Majaal )

ग़ज़ल हो पूरी कैसे, दोपहर होने के पहले ?
सोच हो जाती रुखसत , बहर होने के पहले !

या तो फलसफे ही, कर गए दगाबाजी,
याक़ी  खामोश तूफाँ, कहर होने के पहले !

साँप का काटा, या लत का मारा,
दर्द मजा देता, जहर होने के पहले !

कागज़ी शेर तो खूब कहे  'मजाल',
अँधेरे का क्या करें, सहर होने  के पहले !!

9 comments:

  1. वाह वाह वाह अच्छा लगा |

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  2. साँप का काटा, या लत का मारा,
    दर्द मजा देता, जहर होने के पहले !


    बहुत खूब ..

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  3. सोच हो जाती रुखसत , बहर होने के पहले !

    हा हा हा हा हा हा हा ...अपना भी येही हाल है मजाल साहब...

    नीरज

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  4. साँप का काटा, या लत का मारा,
    दर्द मजा देता, जहर होने के पहले !
    वाह क्या बात कही। सुन्दर । बधाई।

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  5. ग़ज़ल हो पूरी कैसे, दोपहर होने के पहले ?
    सोच हो जाती रुखसत , बहर होने के पहले !

    सच शब्दों को बांधना कहाँ आसान है....

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  6. आप सभी लोगों का आभार ;)

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  7. एक आप हैं जो अंधेरे का फायदा नहीं उठा पा रहे वर्ना ...

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