वक़्त ही वक़्त कमबख्त है भाई, क्या कीजे गर न कीजे कविताई !
कम से कम बनी तो
कभी निकली बनके महक,कभी मवाद-ए- पस बनी ! शरीर आत्मा की गन्दगी बाहर आ जाये तो वो भी अच्छा है |
तब जाकर ये ढंग की 10 बनी'- मुझे नहीं लगता ये हो पाया।
चिरकीन को उठा कर यहाँ ले आए हो और वाहवाही मजाल के नाम पर बटोर रहे हो गन्दे आदमी। वैरी बैड।
एक एक शेर कई कई बार पढ़ा समझ में नहीं आ रहा कि,किन लफ़्ज़ों में तारीफ़ करूं !
गर्मी थी, बेकसी अन्दर,बाहर सुकून-ए-खस बनी !कभी निकली बनके महक,कभी मवाद-ए- पस बनी !आखिर मजाल कितनी सुन्दर गज़ल बनी। मतला तो लाजवाब है बधाई।
गर्मी थी, बेकसी अन्दर,बाहर सुकून-ए-खस बनी ! वाह, कमाल की ग़ज़ल है।...अच्छी लगी।
जितनी भी बन जाएँ अच्छा हैं..... वैसे यह दस कमाल बनी हैं......
मजाल जी बहुत ख़ूब ! गर्मी थी, बेकसी अन्दर, बाहर सुकून-ए-खस बनी ! ग़ालिब की दस ही बनी … बेचारे आपसे पीछे ही रहे … :) शुभकामनाओं सहित- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut achchhe
बेहतरकिसकी बनी है आला ए नापायदार में ?
awesome..funny sms
गजब शायरी।---------ध्यान का विज्ञान।मधुबाला के सौन्दर्य को निरखने का अवसर।
मजाल की मजाल तो देखो....ग़ालिब की मेहनत भी सर्कस बनी!!!भाई, खड़े होके सैल्यूट!आशीष---लम्हा!!!
मजाल साहब कहां हैं ? बीते , बहुत दिन बीते … :)होली की अग्रिम शुभकामनाएं !
कभी निकली बनके महक,कभी मवाद-ए- पस बनी ....Bahut khoob ... ye gazal to lajawaab hi bahi hai ...
मेरा ब्लॉग पड़े ..भावनाओं का संग्रह....http://shalinigaur10.blogspot.com/search?updated-min=2011-01-01T00%3A00%3A00-08%3A00&updated-max=2012-01-01T00%3A00%3A00-08%3A00&max-results=5
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:-)कहाँ गायब हैं आजकल मजाल साहब ??
आजकल आप कहाँ हो आगे नहीं लिख रहे हो?
छोटे बहर की लाज़वाब गज़ल है।
कम से कम बनी तो
ReplyDeleteकभी निकली बनके महक,
ReplyDeleteकभी मवाद-ए- पस बनी !
शरीर आत्मा की गन्दगी बाहर आ जाये तो वो भी अच्छा है |
तब जाकर ये ढंग की 10 बनी'- मुझे नहीं लगता ये हो पाया।
ReplyDeleteचिरकीन को उठा कर यहाँ ले आए हो और वाहवाही मजाल के नाम पर बटोर रहे हो गन्दे आदमी। वैरी बैड।
ReplyDeleteएक एक शेर कई कई बार पढ़ा समझ में नहीं आ रहा कि,किन लफ़्ज़ों में तारीफ़ करूं !
ReplyDeleteगर्मी थी, बेकसी अन्दर,
ReplyDeleteबाहर सुकून-ए-खस बनी !
कभी निकली बनके महक,
कभी मवाद-ए- पस बनी !
आखिर मजाल कितनी सुन्दर गज़ल बनी। मतला तो लाजवाब है बधाई।
गर्मी थी, बेकसी अन्दर,
ReplyDeleteबाहर सुकून-ए-खस बनी !
वाह, कमाल की ग़ज़ल है।
...अच्छी लगी।
जितनी भी बन जाएँ अच्छा हैं..... वैसे यह दस कमाल बनी हैं......
ReplyDeleteमजाल जी
ReplyDeleteबहुत ख़ूब !
गर्मी थी, बेकसी अन्दर,
बाहर सुकून-ए-खस बनी !
ग़ालिब की दस ही बनी … बेचारे आपसे पीछे ही रहे … :)
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut achchhe
ReplyDeleteबेहतर
ReplyDeleteकिसकी बनी है आला ए नापायदार में ?
awesome..
ReplyDeletefunny sms
गजब शायरी।
ReplyDelete---------
ध्यान का विज्ञान।
मधुबाला के सौन्दर्य को निरखने का अवसर।
मजाल की मजाल तो देखो....
ReplyDeleteग़ालिब की मेहनत भी सर्कस बनी!!!
भाई, खड़े होके सैल्यूट!
आशीष
---
लम्हा!!!
मजाल साहब
ReplyDeleteकहां हैं ?
बीते , बहुत दिन बीते … :)
होली की अग्रिम शुभकामनाएं !
कभी निकली बनके महक,
ReplyDeleteकभी मवाद-ए- पस बनी ....
Bahut khoob ... ye gazal to lajawaab hi bahi hai ...
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ReplyDeletehttp://shalinigaur10.blogspot.com/search?updated-min=2011-01-01T00%3A00%3A00-08%3A00&updated-max=2012-01-01T00%3A00%3A00-08%3A00&max-results=5
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ReplyDeleteweb hosting india
:-)
ReplyDeleteकहाँ गायब हैं आजकल मजाल साहब ??
आजकल आप कहाँ हो आगे नहीं लिख रहे हो?
ReplyDeleteछोटे बहर की लाज़वाब गज़ल है।
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