वक़्त ही वक़्त कमबख्त ! हास्य कविता,व्यंग्य,शायरी व अन्य दिमागी खुराफतों का संकलन (Majaal)
वक़्त ही वक़्त कमबख्त है भाई, क्या कीजे गर न कीजे कविताई !
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Saturday, November 27, 2010
सूरज दादा गुस्से में : बाल-कविता (हास्य),
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सूरज दादा उखड़े से, आज भरे है गुस्से से, बोले न छिपूँगा आज, इस बादल के टुकड़े से ! मेरी कोई कदर नहीं, हो मेरा तेज अगर नहीं, कब तक जी ...
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Sunday, October 10, 2010
कट्टी पुच्ची : बाल-कविता ( Bal Kavita - Majaal )
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जितना हो सके, उत्ती कर लें, झूठी नहीं, सच्ची मुच्ची कर लें, ग़म से कर ले, हम कुट्टी , और खुशियों से , पुच्ची कर लें ! ग़म होती है, गन्...
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