आलती पालती बना कर बैठी है,
फुर्सत तबीयत से आ कर बैठी है !
कद्रदान बचे गिने चुने जिंदगी,
और तू हमीं से मुँह फुला कर बैठी है !
मुगालातें टलें तब तो बरी हो,
सुकूं को कब से दबा कर बैठी है !
कमबख्त पुरानी आदतें न छूटती,
जाने क्या घुट्टी खिला कर बैठी है !
अब कोसती है ग़म को क्यों जनम दिया,
अभी अभी बच्चा सुला कर बैठी है !
'मजाल' आज जेब की फिकर करो,
मोहतर्मा मुस्कां सजा कर बैठी है !
8 comments:
'मजाल' आज जेब की फिकर करो,
मोहतर्मा मुस्कां सजा कर बैठी है
:) :)बहुत बढ़िया ..
अब कोसती है ग़म को क्यों जनम दिया,
अभी अभी बच्चा सुला कर बैठी है !
ये वाला अच्छा लगा |
आज दो सवाल आप से
पालती होता है या पालथी
मुंबई में रह कर मेरी हिंदी और ख़राब हो चुकी है सो आप बताए
मुस्कां का क्या मतलब हुआ |
दोनों ही अपनी जगह सहीं है, जैसे संगीता और संगीथा; मिश्रा जी बोलें तो आलती और कृष्णन साहब बोलें तो आलथी ;)
बाकी मक्ते को यूँ पढ़िये :
मजाल आज फिकर करों जेब की,
वो होठों पे मुस्कां सजा कर बैठी है ...
शायरी की सहूलियत के मुताबिक़ कभी कभी शब्दों का हेर फेर कर दिया जाता है.
बाकी हिंदी तो आपकी अच्छी खासी है, उसकी चिंता आप न करें ;)
लगता है लिखने में कुछ गड़बड़ी हो गयी, खैर.... पालती और पालथी में भी वहीँ नियम समझिये ;)
कद्रदान बचे गिने चुने जिंदगी,
और तू हमीं से मुँह फुला कर बैठी है !
मुगालातें टलें तब तो बरी हो,
सुकूं को कब से दबा कर बैठी है
बेहतरीन शे‘र,...बेहतरीन ग़ज़ल।
आपका अंदाजे़-बयां ही कुछ और है।!
कद्रदान बचे गिने चुने जिंदगी,
और तू हमीं से मुँह फुला कर बैठी है !
बहुत सुन्दर!
बेहतरीन !
वाह! बढ़िया शायरी है ये तो!
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