Sunday, July 7, 2024

कविता - यह 'कुछ', ही 'सब-कुछ' है .. ! (Kavita - Majaal)

जीवन की राह में मेरे प्रिय,,
 लम्हा ऐसा भी आता है,
अंतिम लगता है सबकुछ जब,
किन्तु फिर कुछ बच जाता है.

जीवित है की मृत मरा नहीं,
प्रमाण यही तो अवगत है,
जीवन जीने का इच्छुक है,
बाकी बचा कहीं कुछ है,
(और ) सच जान इसे तू मेरे प्रिय !
यह 'कुछ', ही 'सब-कुछ' है .. !

निराशा-बादल के भीतर ,
आशा-बूँदें भी शामिल है,
हर पल,हर घड़ी , हर एक लम्हा,
मौका बनने के काबिल है.

गहरी बदरी जितनी उतनी,
मूसला-बारिश के लक्षण है,
हर अनुभव बन कर नसीहत,
कुछ  सिखलाने में सक्षम है !

हर ख्व्वाब, हर एक तेरा सपना,
पूरा जीने के लायक है,
सच जान इसे तू, मेरे प्रिय !
(ये) सपने ही असल हकीकत है !

ये स्वप्न यहीं दर्शाते की,
जीवन जीने का इच्छुक है,
बाकी बचा कहीं कुछ है,
(और) सच  जान इसे तू , मेरे प्रिय !
यह 'कुछ', ही 'सब-कुछ' है .. !

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