Saturday, January 15, 2011

शायरी पर शायरी (Shayari - Majaal )

हमें सोचा की बस बनी,
रही वो जस की तस बनी !

जब तक जस्बात जब्त थे,
हालत रहमो तरस  बनी !

गर्मी थी, बेकसी अन्दर,
बाहर सुकून-ए-खस बनी !

कभी निकली बनके महक,
कभी मवाद-ए- पस बनी !

ग़ालिब ताउम्र जुटे 'मजाल',
तब जाकर ढंग की दस बनी !

Friday, January 7, 2011

शायरी (Shayari - Majaal)

जिंदगी एक शगल है,
कई  चीज़ों में दखल है !

इधर उधर जो  ढूँढते,
ख़ुशी  तुम्हारे बगल है !

सोचे वादी खाली इन दिनों,
सुकूँ की चहल पहल है !


अरमान गोया कपड़े हो,
हर वक़्त अदल बदल है !

फिर से फुर्सत फिराक में,
नतीजा वही, ग़ज़ल है !

जिंदगी पूरी होती 'मजाल'  
ये मुद्दा क्या दरअसल है  ?!