हमें सोचा की बस बनी,
रही वो जस की तस बनी !
जब तक जस्बात जब्त थे,
हालत रहमो तरस बनी !
गर्मी थी, बेकसी अन्दर,
बाहर सुकून-ए-खस बनी !
कभी निकली बनके महक,
कभी मवाद-ए- पस बनी !
ग़ालिब ताउम्र जुटे 'मजाल',
तब जाकर ढंग की दस बनी !
वक़्त ही वक़्त कमबख्त है भाई, क्या कीजे गर न कीजे कविताई !
Saturday, January 15, 2011
Friday, January 7, 2011
शायरी (Shayari - Majaal)
जिंदगी एक शगल है,
कई चीज़ों में दखल है !
इधर उधर जो ढूँढते,
ख़ुशी तुम्हारे बगल है !
सोचे वादी खाली इन दिनों,
सुकूँ की चहल पहल है !
अरमान गोया कपड़े हो,
हर वक़्त अदल बदल है !
फिर से फुर्सत फिराक में,
नतीजा वही, ग़ज़ल है !
जिंदगी पूरी होती 'मजाल'
ये मुद्दा क्या दरअसल है ?!
कई चीज़ों में दखल है !
इधर उधर जो ढूँढते,
ख़ुशी तुम्हारे बगल है !
सोचे वादी खाली इन दिनों,
सुकूँ की चहल पहल है !
अरमान गोया कपड़े हो,
हर वक़्त अदल बदल है !
फिर से फुर्सत फिराक में,
नतीजा वही, ग़ज़ल है !
जिंदगी पूरी होती 'मजाल'
ये मुद्दा क्या दरअसल है ?!
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