कुछ फुटकर हास्य कविताएँ, या फिर कुछ कुछ मजालिया किस्म की नज्में ही समझिये .....
1. जब,
पूरी ताकत लगाने पर,
झटके दे दे कर,
मुँह से गर्म करने पर,
और हजार बार रगड़ने ,
के बावजूद,
स्याही नहीं आती,
ठीक से,
कागज़ पर,
तब,
अन्दर जब्त,
वो अधपके से जस्बात,
बनके लफ्ज़,
चढ़ आतें है ऊपर,
और वो आवाज़,
वो आहट,
सुनने के बजाए,
दिखती है,
चेहरे पर,
बनके,
झल्लाहट ... !
2. मियाँ मजाल !
आपकी सोच में पाई गयी है अनियमता,
क्यों न उसे निरस्त कर दिया जाए,
और क्यों न बहाल कर लिया जाए,
सुकून को, जो है, मुल्तवी,
सूद के साथ.
जिंदगी अक्सर,
तन्हाइयों में,
भेजती रहती है मुझे,
कारण बताओ नोटिस !
3. जैसे,
किसी शायर ने,
जो जो,
जैसा जैसा,
जहाँ जहाँ,
सोच कर कहा था,
उसे,
वहाँ वहाँ,
उन उन,
जगहों में,
मिल जाए,
ठीक,
वैसी की वैसी,
दाद.....
मुराद !!!!!