वक़्त ही वक़्त कमबख्त है भाई, क्या कीजे गर न कीजे कविताई !
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Tuesday, July 8, 2025
Marriage Anniversary Special - 'म-जारा'-ए-marriage (मजाल) (Chat-GPT के सौजन्य-ए-जुगलबंदी से !)
जो तेरे साथ पूरी जिंदगी का गुजारा हो जाए,
तो 'मजाल' कदाचित ऐसा म-जारा हो जाए,
की ए-क ए-क करके सारे सपने हो हकीकत,
रो-जाना nightmares का साक्षात नजारा हो जाए!
जो तेरे साथ पूरी ज़िंदगी का गुज़ारा हो जाए......❤️
सुबह उठते ही चाय मिले — पर गरम न हो,
न्यूज़पेपर से पहले तेरा मूड हरदम नरम न हो...
तो क्या कहें उस सना-तनी इत्तेफाक को,
जो म-जारा बन जाता हर इतवार को!
सपनों में जो कभी थे Maldives, Paris, Santo-rini,
अब हो चुके हैं पास — पर Google Street View में ही सही! 😅
कभी थे candle-light dinner के ख्वाब,
अब मिक्स वेज की सब्ज़ी और बच्चों के maths का जवाब! 😵♂️
रातों के वो रोमांटिक whispers जो दिल को बहकाते थे,
अब "तू गैस सिलेंडर भरवा ले" में बदल जाते हैं!
'मजाल' खुद को दे दिलासा, हरि-दय को यूं समझाते है,
की भाई - 'सच कहें तो यही असली प्यार का म-जारा है,
जहाँ हर झगड़ा भी एक किस्म का इशारा है,
कि “मैं नाराज़ हूँ” का मतलब — “बस गले लग जा यारा” है! ❤️
जो तेरे साथ पूरी ज़िंदगी का गुज़ारा हो जाए......❤️
तेरे साथ ज़िंदगी का सफ़र जब शुरू हुआ,
तो सोचा था — थोड़ा सा हसीन, थोड़ा सा 'चलो देखा जाएगा' types होगा।
पर जो हुआ… वो तो पूरा एक daily soap निकला,
जिसमें मैं ही हीरो भी, विलन भी… और victim और vin-dict भी! 😂
पर मानता हूँ, तेरी मुस्कान — हाँ - वही, जो selfie में कम आती है!
वो मेरे दिन के सबसे bright moments में से एक है।
fantasies चाहे आदतन दुनिया भर की पाले 'मजाल' मगर,
तुझसे जियादह किसी और को झेलना mandrick मायाजाल में भी fake है!
तो मेरी जान, मेरी वाइफ, मेरी WiFi की असली यूज़र,
Happy Anniversary —
तेरे साथ ये म-जारा, हर साल और शानदार होता जाए।
और जो तू अब तक समझ नहीं पाई मुझे,
तो कोई बात नहीं — इस बार हम 'ChatG-P-T' को भी अपनाए!
इस उम्मीद में की तेरा थोड़ा थोड़ा decode हो जाए!
और अपने सनातनी प्रेम मे यह - much needed upgrade हो जाए!!
तो इस सालगिरह पर, चलो फिर वो effect renew करते हैं,
थोड़ी चिकचिक, थोड़ी हंसी — को fantasies में पूरा करते हैं।
क्योंकि शादी नाम की ये जो जुगलबंदी है,
यही तो सबसे epic किस्म का म-जारा बंदी है!
जो तेरे साथ पूरी ज़िंदगी का गुज़ारा हो जाए......❤️
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Sunday, July 7, 2024
कविता - यह 'कुछ', ही 'सब-कुछ' है .. !
जीवन की राह में मेरे प्रिय,,
लम्हा ऐसा भी आता है,
अंतिम लगता है सबकुछ जब,
किन्तु फिर कुछ बच जाता है.
जीवित है की मृत मरा नहीं,
प्रमाण यही तो अवगत है,
जीवन जीने का इच्छुक है,
बाकी बचा कहीं कुछ है,
(और ) सच जान इसे तू मेरे प्रिय !
यह 'कुछ', ही 'सब-कुछ' है .. !
निराशा-बादल के भीतर ,
आशा-बूँदें भी शामिल है,
हर पल,हर घड़ी , हर एक लम्हा,
मौका बनने के काबिल है.
गहरी बदरी जितनी उतनी,
मूसला-बारिश के लक्षण है,
हर अनुभव बन कर नसीहत,
कुछ सिखलाने में सक्षम है !
हर ख्व्वाब, हर एक तेरा सपना,
पूरा जीने के लायक है,
सच जान इसे तू, मेरे प्रिय !
(ये) सपने ही असल हकीकत है !
ये स्वप्न यहीं दर्शाते की,
जीवन जीने का इच्छुक है,
बाकी बचा कहीं कुछ है,
(और) सच जान इसे तू , मेरे प्रिय !
यह 'कुछ', ही 'सब-कुछ' है .. !
लम्हा ऐसा भी आता है,
अंतिम लगता है सबकुछ जब,
किन्तु फिर कुछ बच जाता है.
जीवित है की मृत मरा नहीं,
प्रमाण यही तो अवगत है,
जीवन जीने का इच्छुक है,
बाकी बचा कहीं कुछ है,
(और ) सच जान इसे तू मेरे प्रिय !
यह 'कुछ', ही 'सब-कुछ' है .. !
निराशा-बादल के भीतर ,
आशा-बूँदें भी शामिल है,
हर पल,हर घड़ी , हर एक लम्हा,
मौका बनने के काबिल है.
गहरी बदरी जितनी उतनी,
मूसला-बारिश के लक्षण है,
हर अनुभव बन कर नसीहत,
कुछ सिखलाने में सक्षम है !
हर ख्व्वाब, हर एक तेरा सपना,
पूरा जीने के लायक है,
सच जान इसे तू, मेरे प्रिय !
(ये) सपने ही असल हकीकत है !
ये स्वप्न यहीं दर्शाते की,
जीवन जीने का इच्छुक है,
बाकी बचा कहीं कुछ है,
(और) सच जान इसे तू , मेरे प्रिय !
यह 'कुछ', ही 'सब-कुछ' है .. !
(रूचि अग्रवाल जी के सौजन्य से)
Thursday, August 15, 2013
शायरी - है मोहब्बत के सिवा और चारा क्या ?!
ग़मों का है कोई किनारा क्या ?
है उम्मीदों के बिना गुज़ारा क्या ?!
फूलों की खुशबू, बच्चों की मुस्कुराहट,
उम्मीदों को चाहिए और सहारा क्या ?!
बिना आपके हमारा गुज़ारा क्या ?
करियेगा हमसे दोस्ती दुबारा क्या ?!
जब दिल मिले, गिले शिकवे सब दूर हुए,
सब एक हुआ, उसका क्या, हमारा क्या ?!
दौरे-नफ़रत, जाते जाते , ये कह गया 'मजाल',
"है मोहब्बत के सिवा और चारा क्या ?!"
है उम्मीदों के बिना गुज़ारा क्या ?!
फूलों की खुशबू, बच्चों की मुस्कुराहट,
उम्मीदों को चाहिए और सहारा क्या ?!
बिना आपके हमारा गुज़ारा क्या ?
करियेगा हमसे दोस्ती दुबारा क्या ?!
जब दिल मिले, गिले शिकवे सब दूर हुए,
सब एक हुआ, उसका क्या, हमारा क्या ?!
दौरे-नफ़रत, जाते जाते , ये कह गया 'मजाल',
"है मोहब्बत के सिवा और चारा क्या ?!"
Saturday, January 15, 2011
शायरी पर शायरी (Shayari - Majaal )
हमें सोचा की बस बनी,
रही वो जस की तस बनी !
जब तक जस्बात जब्त थे,
हालत रहमो तरस बनी !
गर्मी थी, बेकसी अन्दर,
बाहर सुकून-ए-खस बनी !
कभी निकली बनके महक,
कभी मवाद-ए- पस बनी !
ग़ालिब ताउम्र जुटे 'मजाल',
तब जाकर ढंग की दस बनी !
रही वो जस की तस बनी !
जब तक जस्बात जब्त थे,
हालत रहमो तरस बनी !
गर्मी थी, बेकसी अन्दर,
बाहर सुकून-ए-खस बनी !
कभी निकली बनके महक,
कभी मवाद-ए- पस बनी !
ग़ालिब ताउम्र जुटे 'मजाल',
तब जाकर ढंग की दस बनी !
Friday, January 7, 2011
शायरी (Shayari - Majaal)
जिंदगी एक शगल है,
कई चीज़ों में दखल है !
इधर उधर जो ढूँढते,
ख़ुशी तुम्हारे बगल है !
सोचे वादी खाली इन दिनों,
सुकूँ की चहल पहल है !
अरमान गोया कपड़े हो,
हर वक़्त अदल बदल है !
फिर से फुर्सत फिराक में,
नतीजा वही, ग़ज़ल है !
जिंदगी पूरी होती 'मजाल'
ये मुद्दा क्या दरअसल है ?!
कई चीज़ों में दखल है !
इधर उधर जो ढूँढते,
ख़ुशी तुम्हारे बगल है !
सोचे वादी खाली इन दिनों,
सुकूँ की चहल पहल है !
अरमान गोया कपड़े हो,
हर वक़्त अदल बदल है !
फिर से फुर्सत फिराक में,
नतीजा वही, ग़ज़ल है !
जिंदगी पूरी होती 'मजाल'
ये मुद्दा क्या दरअसल है ?!
Thursday, December 23, 2010
हास्य : प्यार, मोहब्बत और शायरी-ए-Fusion ( Shayari - Majaal )
जितना पुराना, उतना divine ,
प्यार है गोया कोई wine !
जबतक बच्चों को लगे न रोग,
तब तक इश्कबाजी है fine !
प्यार की कीमत पता चली,
blank चेक पर किया जब sign !
अब तो तू हो जा मेरी,
उम्र होने को ninety nine !
हसरतों में निकली 'मजाल',
जिंदगी ने कभी दी ना line !
प्यार है गोया कोई wine !
जबतक बच्चों को लगे न रोग,
तब तक इश्कबाजी है fine !
प्यार की कीमत पता चली,
blank चेक पर किया जब sign !
अब तो तू हो जा मेरी,
उम्र होने को ninety nine !
हसरतों में निकली 'मजाल',
जिंदगी ने कभी दी ना line !
Tuesday, December 21, 2010
शायरी ( Shayari - Majaal )
बस खयालों में ही जिंदगी न गढ़ी जाए,
बातें कुछ तजुर्बे से भी कही जाए !
ये हालत इतने बुरे भी कहाँ यारों,
अखबार-ए-जिंदगी भी कभी पढ़ी जाए !
औरों की खबर हुज़ूर होगी बाद में,
पहले अपने ईमाँ से तो जंग लड़ी जाए !
उम्मीद माँगे कहाँ बड़ा सूरमा ?
'मजाल' से ही गिनती शुरू करी जाए !
बातें कुछ तजुर्बे से भी कही जाए !
ये हालत इतने बुरे भी कहाँ यारों,
अखबार-ए-जिंदगी भी कभी पढ़ी जाए !
औरों की खबर हुज़ूर होगी बाद में,
पहले अपने ईमाँ से तो जंग लड़ी जाए !
उम्मीद माँगे कहाँ बड़ा सूरमा ?
'मजाल' से ही गिनती शुरू करी जाए !
Sunday, December 19, 2010
फलसफाई, शायरी और चुटकियाँ ( Shayari - Majaal )
ये रिश्ता चलता रहेगा बढ़िया जाने,
अपनी कहें, हमारा नज़रिया जाने !
गर राज़ रखना है तो खुद में दफ़्न कर,
कहा एक को तो फिर सारी दुनिया जाने !
उनकी शराफत के किस्से किनसे सुनेंगे ?
रमिया जाने उनको या फिर छमिया जाने !
अहसान लेने की नियत नहीं 'मजाल',
इन मामलों में हमें कुछ बनिया जाने !
अपनी कहें, हमारा नज़रिया जाने !
गर राज़ रखना है तो खुद में दफ़्न कर,
कहा एक को तो फिर सारी दुनिया जाने !
उनकी शराफत के किस्से किनसे सुनेंगे ?
रमिया जाने उनको या फिर छमिया जाने !
अहसान लेने की नियत नहीं 'मजाल',
इन मामलों में हमें कुछ बनिया जाने !
Friday, December 17, 2010
शायरी ( Shayari - Majaal )
आलती पालती बना कर बैठी है,
फुर्सत तबीयत से आ कर बैठी है !
कद्रदान बचे गिने चुने जिंदगी,
और तू हमीं से मुँह फुला कर बैठी है !
मुगालातें टलें तब तो बरी हो,
सुकूं को कब से दबा कर बैठी है !
कमबख्त पुरानी आदतें न छूटती,
जाने क्या घुट्टी खिला कर बैठी है !
अब कोसती है ग़म को क्यों जनम दिया,
अभी अभी बच्चा सुला कर बैठी है !
'मजाल' आज जेब की फिकर करो,
मोहतर्मा मुस्कां सजा कर बैठी है !
फुर्सत तबीयत से आ कर बैठी है !
कद्रदान बचे गिने चुने जिंदगी,
और तू हमीं से मुँह फुला कर बैठी है !
मुगालातें टलें तब तो बरी हो,
सुकूं को कब से दबा कर बैठी है !
कमबख्त पुरानी आदतें न छूटती,
जाने क्या घुट्टी खिला कर बैठी है !
अब कोसती है ग़म को क्यों जनम दिया,
अभी अभी बच्चा सुला कर बैठी है !
'मजाल' आज जेब की फिकर करो,
मोहतर्मा मुस्कां सजा कर बैठी है !
Sunday, December 12, 2010
विशुद्ध हास्य - आधुनिक कविता ( Hasya Kavita - Majaal )
!
ओं !
सुनो !
मजाल !
इसी तरह से,
बीच बीच में एंटर,
मार कर बन जाता है,
गद्य लेखन पद्य और फिर,
वो मुझे प्यार से कहती है की देखो,
ये है मेरी आधुनिक कविता !
ऊपर से नीचे तक देखता हूँ,
पढ़ता हुआ उसे, मगर,
समझ नहीं पाता ,
तो कह देता हूँ,
डिजाईन ,
अच्छा,
है !
!
ओं !
सुनो !
मजाल !
इसी तरह से,
बीच बीच में एंटर,
मार कर बन जाता है,
गद्य लेखन पद्य और फिर,
वो मुझे प्यार से कहती है की देखो,
ये है मेरी आधुनिक कविता !
ऊपर से नीचे तक देखता हूँ,
पढ़ता हुआ उसे, मगर,
समझ नहीं पाता ,
तो कह देता हूँ,
डिजाईन ,
अच्छा,
है !
!
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Saturday, December 11, 2010
शायरी - यादों की चुस्कियाँ ( Shayari - Majaal )
कुछ घरेलु किस्म की शायरी ;)
मौके बेमौके हो जाते मेहरबान से,
बच कर ही रहिये ऐसे कद्रदान से !
जली जुबान दिन भर रखेगी परेशान,
यादों की चुस्कियाँ लीजिये इत्मीनान से !
नज़रंदाज़ कर करके संभाले है रिश्ते,
एक से सुना, निकला दूसरे कान से !
सुलझेगा न मुद्दा, नुमाइश ही होगी,
खबर न बाहर जाने पाए मकान से !
सबकुछ मयस्सर, फिर भी क्या कमी है ?
'मजाल' कभी कभी जिंदगी ताकते हैरान से !
मौके बेमौके हो जाते मेहरबान से,
बच कर ही रहिये ऐसे कद्रदान से !
जली जुबान दिन भर रखेगी परेशान,
यादों की चुस्कियाँ लीजिये इत्मीनान से !
नज़रंदाज़ कर करके संभाले है रिश्ते,
एक से सुना, निकला दूसरे कान से !
सुलझेगा न मुद्दा, नुमाइश ही होगी,
खबर न बाहर जाने पाए मकान से !
सबकुछ मयस्सर, फिर भी क्या कमी है ?
'मजाल' कभी कभी जिंदगी ताकते हैरान से !
Friday, December 10, 2010
"मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनाने वाली हूँ" - फुटकर हास्य-कविताएँ ( Hasya Kavitaen - Majaal )
कुछ फुटकर हास्य कविताएँ, थोड़े थोड़े दर्शन से साथ ;)
1. "मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनाने वाली हूँ",
अगर रिश्ता पति पत्नी,
तो खबर ख़ुशी की,
अगर लैला मजनू,
तो लग गयी वाट !
कभी कभी जिंदगी में,
घटनाओं से ज्यादा,
मायने रखते 'मजाल',
उनके हालत !
2. दुर्जनों की सौ सौ वाह वाही,
कर न पाएगी उम्रभर,
सज्जनों की दस दुहाई,
पर कर जाएगी काम,
सड़े फलों से बेहतर खाना ,
ताज़ा छिलके 'मजाल',
खुमानी की तो निकलेगी, गुठली भी बादाम !
...... और एक नज़्म :
* जिंदगी की आपाधापी,
गर्माते मिजाज़ के बीच,
कहीं से,
उड़ कर आया,
यादों का एक टुकड़ा,
और कर गया,
आँखों को.
जरा जरा सा नम,
अचानक हुई इस फुहार,
से हो गयी,
जस्बातों की,
तपती जमीन गीली,
और,
माहौल खुशनुमा हो गया !
1. "मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनाने वाली हूँ",
अगर रिश्ता पति पत्नी,
तो खबर ख़ुशी की,
अगर लैला मजनू,
तो लग गयी वाट !
कभी कभी जिंदगी में,
घटनाओं से ज्यादा,
मायने रखते 'मजाल',
उनके हालत !
2. दुर्जनों की सौ सौ वाह वाही,
कर न पाएगी उम्रभर,
सज्जनों की दस दुहाई,
पर कर जाएगी काम,
सड़े फलों से बेहतर खाना ,
ताज़ा छिलके 'मजाल',
खुमानी की तो निकलेगी, गुठली भी बादाम !
...... और एक नज़्म :
* जिंदगी की आपाधापी,
गर्माते मिजाज़ के बीच,
कहीं से,
उड़ कर आया,
यादों का एक टुकड़ा,
और कर गया,
आँखों को.
जरा जरा सा नम,
अचानक हुई इस फुहार,
से हो गयी,
जस्बातों की,
तपती जमीन गीली,
और,
माहौल खुशनुमा हो गया !
Thursday, December 9, 2010
फुटकर हास्य कविताएँ और ' मजालिया अढाईपंती '
यूँ तो हास्य होता है फकत हास्य, और उसका लक्ष्य होता सिर्फ मनोरंजन, मगर किसी भी चीज़ को विधा का रूप दे कर उसकी विवेचना करी जा सकती है. जैसे की होने को सिर्फ एक लड़की है, पर जो शायरों की नज़र पड़ी, तो फिर जुल्फों से ले कर होंठ, कमर से ले कर आँखे, एक एक पर चुन चुन कर जिक्र, और कमबख्त तकरीबन हर अदा पर नाजुक से नाजुक ख्याल को शेरों में बाँध लेतें है ! यही बात हास्य पर भी लागू होती है. हास्य कविता चाहे शुद्ध हास्य कविता हो या दर्शन, व्यंग्य को या गंभीर काला हास्य, अलग अलग तरीको से उसको निभाया जा सकता है.
अब होता यह है की किसी एक तरीके का दुहराव, आपको धीरे धीरे उससे उकता देता है, और इसीलिए हर एक विधा में समय समय पर कुछ नयापन लाना जरूरी है. इसी परंपरा को जारी रखते हुए मियाँ मजाल ने एक नयी हास्य विधा का इजात करने की सोची है ! इसको हम कहेंगे 'अढाईपंती' !
अंग्रेजी में जिसे poor jokes या pj कहते है, इसे उसी का व्यवस्थित रूप समझिये. इसकी शैली जापानी हाईकू (haiku ) जैसी है. हाइकू एक छोटी सी रचना होती है जिसमे तीन लाइनें होती है. इन तीन लाइनों के कुछ नियम होते है, पर यहाँ हम सिर्फ अढाईपंती के नियमों के बारें में बात करेंगे. तो कुल मिला कर अढाईपंती हास्य विधा वो हुई जिसमे :
१. हाइकू की तीन लाइन की तर्ज़ पर ही ढाई ( दो और आधा ) लाइन का मीटर हो.
२. पहली दो पंक्तियाँ या लाइनें तुकबंदी में हो, जो की भूमिका बाँधें , और तीसरी (आधी लाइन -अढाई ) एक अचानक उटपटांग, कुछ-तोबी, poor joke किस्म का ब्रह्म वाक्य (!) हो, जिससे की हास्य का सर्जन हो.
उदहारण के लिए :
तुम और मैं, मैं और तुम,
मैं और तुम, तुम और मैं,
एक दूजे के लिए.
ऊपर की रचना को लें, तो उसमे पहली और दूसरी लाइनों में ६-६ शब्द है, और वो परस्पर तुकबंदी में लग रहे है. तीसरी लाइन में चार शब्द है, ६ के मुकाबले ४ को तकरीबन आधा मन जा सकता है, तो इस तरह यह हुई अढाई रचना. अब इस रचना में एक भाव है जो की बड़ा स्वाभाविक सा है - हम और तुम, एक दूजे के लिए. पहली दो पंक्तियों के बाद कोई तीसरी पंक्ति पढ़े, तो उसे कोई ख़ास हैरानी नहीं होगी, क्योकि 'हम तुम एक दोजे के लिए' भाव एक बड़ी ही आम सी बात है. अब इस अढाई रचना में कुछ-तोभी-पना, कुछ ऊटपटाँग, कुछ absurd किस्म का रूप अढाई'पंती' कहलाएगा. जैसे की :
तुम और मैं, मैं और तुम,
मैं और तुम, तुम और मैं,
तुक में है !!!
अब इस रचना में 'तुक में है' ब्रह्म वाक्य की तरह रचना को पूरी तरह से उल्जहूल बन देता है की यह क्या बात हुई ! आप उम्मीद कर रहे है कुछ रोमांटिक चीज़ की, और कोई आपके मूड की ऐसी तैसी कर दे. तो इस चीज़ पर आप बोल सकते है की - ये क्या अढाईपंती है !
अभी एक किस्त और झेलना बाकी है, उसके लिए आपको कुछ दिनों की महौलत दी जाती है. हम अपना हुनर थोड़ा और मकम्मल कर लें, बाकी की पिक्चर इंटरवेल के बाद !
अब होता यह है की किसी एक तरीके का दुहराव, आपको धीरे धीरे उससे उकता देता है, और इसीलिए हर एक विधा में समय समय पर कुछ नयापन लाना जरूरी है. इसी परंपरा को जारी रखते हुए मियाँ मजाल ने एक नयी हास्य विधा का इजात करने की सोची है ! इसको हम कहेंगे 'अढाईपंती' !
अंग्रेजी में जिसे poor jokes या pj कहते है, इसे उसी का व्यवस्थित रूप समझिये. इसकी शैली जापानी हाईकू (haiku ) जैसी है. हाइकू एक छोटी सी रचना होती है जिसमे तीन लाइनें होती है. इन तीन लाइनों के कुछ नियम होते है, पर यहाँ हम सिर्फ अढाईपंती के नियमों के बारें में बात करेंगे. तो कुल मिला कर अढाईपंती हास्य विधा वो हुई जिसमे :
१. हाइकू की तीन लाइन की तर्ज़ पर ही ढाई ( दो और आधा ) लाइन का मीटर हो.
२. पहली दो पंक्तियाँ या लाइनें तुकबंदी में हो, जो की भूमिका बाँधें , और तीसरी (आधी लाइन -अढाई ) एक अचानक उटपटांग, कुछ-तोबी, poor joke किस्म का ब्रह्म वाक्य (!) हो, जिससे की हास्य का सर्जन हो.
उदहारण के लिए :
तुम और मैं, मैं और तुम,
मैं और तुम, तुम और मैं,
एक दूजे के लिए.
ऊपर की रचना को लें, तो उसमे पहली और दूसरी लाइनों में ६-६ शब्द है, और वो परस्पर तुकबंदी में लग रहे है. तीसरी लाइन में चार शब्द है, ६ के मुकाबले ४ को तकरीबन आधा मन जा सकता है, तो इस तरह यह हुई अढाई रचना. अब इस रचना में एक भाव है जो की बड़ा स्वाभाविक सा है - हम और तुम, एक दूजे के लिए. पहली दो पंक्तियों के बाद कोई तीसरी पंक्ति पढ़े, तो उसे कोई ख़ास हैरानी नहीं होगी, क्योकि 'हम तुम एक दोजे के लिए' भाव एक बड़ी ही आम सी बात है. अब इस अढाई रचना में कुछ-तोभी-पना, कुछ ऊटपटाँग, कुछ absurd किस्म का रूप अढाई'पंती' कहलाएगा. जैसे की :
तुम और मैं, मैं और तुम,
मैं और तुम, तुम और मैं,
तुक में है !!!
अब इस रचना में 'तुक में है' ब्रह्म वाक्य की तरह रचना को पूरी तरह से उल्जहूल बन देता है की यह क्या बात हुई ! आप उम्मीद कर रहे है कुछ रोमांटिक चीज़ की, और कोई आपके मूड की ऐसी तैसी कर दे. तो इस चीज़ पर आप बोल सकते है की - ये क्या अढाईपंती है !
अभी एक किस्त और झेलना बाकी है, उसके लिए आपको कुछ दिनों की महौलत दी जाती है. हम अपना हुनर थोड़ा और मकम्मल कर लें, बाकी की पिक्चर इंटरवेल के बाद !
Wednesday, December 8, 2010
ग़ज़ल हो पूरी कैसे, दोपहर होने के पहले, सोच हो जाती रुखसत , बहर होने के पहले ! ( Shayari - Majaal )
ग़ज़ल हो पूरी कैसे, दोपहर होने के पहले ?
सोच हो जाती रुखसत , बहर होने के पहले !
या तो फलसफे ही, कर गए दगाबाजी,
याक़ी खामोश तूफाँ, कहर होने के पहले !
साँप का काटा, या लत का मारा,
दर्द मजा देता, जहर होने के पहले !
कागज़ी शेर तो खूब कहे 'मजाल',
अँधेरे का क्या करें, सहर होने के पहले !!
सोच हो जाती रुखसत , बहर होने के पहले !
या तो फलसफे ही, कर गए दगाबाजी,
याक़ी खामोश तूफाँ, कहर होने के पहले !
साँप का काटा, या लत का मारा,
दर्द मजा देता, जहर होने के पहले !
कागज़ी शेर तो खूब कहे 'मजाल',
अँधेरे का क्या करें, सहर होने के पहले !!
Tuesday, December 7, 2010
शुद्ध हास्य-कविता - बच के कहाँ जाओगी रानी ! ( Hasya Kavita - Majaal )
बच के कहाँ जाओगी रानी !
हमसा कहाँ पाओगी रानी !
इतने दिनों से नज़र है तुझपे,
रोच गच्चा दे जाती है !
आज तो मौका हाथ आया है !
बस तुम हो और,
बस मैं हूँ, बस !
बंद अकेला और कमरा है !
इतने दिनों से सोच रहा हूँ,
अपने अरमां उड़ेल दूँ,
सारे तुझ पर ,
आज तू अच्छी हाथ आई है !
करूँगा सारे मंसूबे पूरे !
आज तो चाहे जो हो जाए,
छोड़ूगा नहीं,
ऐ सोच !
तुझे,
कविता बनाए बिना !!!
हमसा कहाँ पाओगी रानी !
इतने दिनों से नज़र है तुझपे,
रोच गच्चा दे जाती है !
आज तो मौका हाथ आया है !
बस तुम हो और,
बस मैं हूँ, बस !
बंद अकेला और कमरा है !
इतने दिनों से सोच रहा हूँ,
अपने अरमां उड़ेल दूँ,
सारे तुझ पर ,
आज तू अच्छी हाथ आई है !
करूँगा सारे मंसूबे पूरे !
आज तो चाहे जो हो जाए,
छोड़ूगा नहीं,
ऐ सोच !
तुझे,
कविता बनाए बिना !!!
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Monday, December 6, 2010
यहाँ तो हर शेर ही वाह-वा है, ऐसी दाद से हमें तौ-बा है ! ( Shayari - Majaal )
यहाँ तो हर शेर ही वाह-वा है !
ऐसी दाद से, हमें तौ-बा है !!
जो दौर दोनों तरफ से तारीफों का ,
जो गौर करिएगा, बस एक सौदा है !
गलतफहमियाँ, मुगालतें है पनपी जो,
उखाड़ जड़ करिए, अभी पौंधा है !
शर्मों-हया, बुर्कापरस्त महफ़िल में,
मजाल सा एक कुछ कहीं कौंधा है.
ऐसी दाद से, हमें तौ-बा है !!
जो दौर दोनों तरफ से तारीफों का ,
जो गौर करिएगा, बस एक सौदा है !
गलतफहमियाँ, मुगालतें है पनपी जो,
उखाड़ जड़ करिए, अभी पौंधा है !
शर्मों-हया, बुर्कापरस्त महफ़िल में,
मजाल सा एक कुछ कहीं कौंधा है.
Thursday, December 2, 2010
शायरी - तजुर्बा ( Shayari - Majaal )
बहुत ही ऊँचें दाम की निकली,
चीज़ मगर वो काम की निकली !
शुरू किया आज़माना मुश्किल,
ज्यादातर बस नाम की निकली !
मौका मिला तो सरपट भागी,
ख्वाहिशें थी लगाम की निकली !
अँधेरा देखा उजाले में जब ,
सुबह भी दिखी शाम की निकली !
फ़िज़ूल-ए-फितूर हटा दे गर तो,
बाकी जिंदगी आराम की निकली !
महोब्बत से पाई जन्नत 'मजाल',
बातें झूठी शैतान की निकली !
चीज़ मगर वो काम की निकली !
शुरू किया आज़माना मुश्किल,
ज्यादातर बस नाम की निकली !
मौका मिला तो सरपट भागी,
ख्वाहिशें थी लगाम की निकली !
अँधेरा देखा उजाले में जब ,
सुबह भी दिखी शाम की निकली !
फ़िज़ूल-ए-फितूर हटा दे गर तो,
बाकी जिंदगी आराम की निकली !
महोब्बत से पाई जन्नत 'मजाल',
बातें झूठी शैतान की निकली !
Tuesday, November 30, 2010
चाचा चौधरी का दिमाग कम्पूटर से भी तेज़ चलता है !
कुछ उन्मुक्त क्षणिकाएँ समझ लीजिये, या बे-बहरिया त्रिवेणी; या फिर फुरसतिया दिमाग की खुराफाती तबीयत का नतीजा मान कर ही झेल जाइए ....
1. दुनिया से बेखबर ,
कुत्ते की तरह सोता मजदूर,
मेहनत का ईनाम .... आराम !
2. उलझन, प्रश्न अनुत्तरित!
जगत सरल अथवा गूढ़ ?
किमकर्तव्यविमूढ़ !
3. लो हो गया ये भी !
अब क्या, अब क्या ?
वक़्त ही वक़्त कमबख्त !
4. पेट भूखा और दिल उदास,
ग़म को ही खा गए कच्चा चबा कर,
चाचा चौधरी का दिमाग कम्पूटर से भी तेज़ चलता है !
1. दुनिया से बेखबर ,
कुत्ते की तरह सोता मजदूर,
मेहनत का ईनाम .... आराम !
2. उलझन, प्रश्न अनुत्तरित!
जगत सरल अथवा गूढ़ ?
किमकर्तव्यविमूढ़ !
3. लो हो गया ये भी !
अब क्या, अब क्या ?
वक़्त ही वक़्त कमबख्त !
4. पेट भूखा और दिल उदास,
ग़म को ही खा गए कच्चा चबा कर,
चाचा चौधरी का दिमाग कम्पूटर से भी तेज़ चलता है !
Monday, November 29, 2010
शायरी - बिल तुम भरो, कभी हम भरें ! ( Shayari - Majaal )
कुछ तुमे भरो, कुछ हम भरे,
तब जा कर ये, जखम भरें !
हुआ लबालब, छलक जाएगा,
ये आँखें अश्क, कुछ कम भरें !
बच कर ही रहना उससे तुम,
अक्सर वफ़ा का वो दम भरे !
काम पीने के तक न आएगा,
क्यों समंदर-ए-ग़म भरे ?!
रहे दोस्ती ये कायम 'मजाल',
बिल तुम भरो, कभी हम भरें !
तब जा कर ये, जखम भरें !
हुआ लबालब, छलक जाएगा,
ये आँखें अश्क, कुछ कम भरें !
बच कर ही रहना उससे तुम,
अक्सर वफ़ा का वो दम भरे !
काम पीने के तक न आएगा,
क्यों समंदर-ए-ग़म भरे ?!
रहे दोस्ती ये कायम 'मजाल',
बिल तुम भरो, कभी हम भरें !
Sunday, November 28, 2010
लघुकथा - ग़ालिब आखिर पत्थर निकले काम के ... !
वो घोर नास्तिक था. ईश्वर के न होने के पक्ष ऐसे ऐसे तर्क प्रस्तुत करता था, की प्रसिद्ध था, की यदि साक्षात प्रभु भी उसके तर्क सुन लें, तो वे स्वयं भी अपने अस्तित्व के प्रति आशंकित हो जाए ! कट्टरपंथियों को उसका यह नजरिया पसंद नहीं आया. कुछ लोग उसे अगुआ कर दूर रेगिस्तान ले गए, और उस पर पत्थर बरसा कर अधमरी हालत में छोड़ आए, की बाकी सब प्रभु संभाल ही लेंगे !
वो कई घंटों तक अचेतन और अवचेतन के बीच की अवस्था में बड़बड़ाता रहा. कभी लोगों को कोसता, कभी अपने तर्कों को दोहराता, कभी खुद को कोसता, और कभी अपने ही तर्कों पर सवाल करने लगता ! घंटों तक यही सिलसिला चलता रहा. दिन से रात हो गयी. अब उसे भूख की याद आई, प्यास की भी याद आई ! रेगिस्तान में दिन में जितनी भयंकर गर्मी, रात में उतनी ही कातिलाना ठंड ! बड़बड़ाने से ध्यान बँटा , तब ठंड भी उसे अपने तर्कों की ही तरह भेदक मालूम हुई !
अब उसे ईश्वर के अस्तित्व से ज्यादा अपने अस्तित्व की चिंता हुई ! ठण्ड से बचने के लिए कोई सुरक्षित स्थान न दिखा. फिर नज़र उन पत्थरों के ढेर पर गयी जो लोगों ने उस पर फेकें थे. उन्हीं में से छाँट कर एक काम चलाऊ गुफानुमा ढाँचा बना कर जैसे तैसे रात गुजारी. भूख के बारे में सोचता हुआ बेहोश हो गया.
अगले दिन होश आया तो खुद को बीच सफ़र में एक गाड़ी के अंदर पाया. जाने कहाँ से उस वीरान जगह से गुजरते वक़्त, कुछ सैलानियों की नज़र उस पर पड़ गयी थी ! खाना भी नसीब हो गया, और पानी भी !रात को अपने प्राण बचाने में उसे कुछ योगदान उस जुगाडिया गुफा का भी लगा ! खाते खाते वो सोच रहा था, कमबख्त कुछ पत्थर तो बड़े काम के निकले !
वो कई घंटों तक अचेतन और अवचेतन के बीच की अवस्था में बड़बड़ाता रहा. कभी लोगों को कोसता, कभी अपने तर्कों को दोहराता, कभी खुद को कोसता, और कभी अपने ही तर्कों पर सवाल करने लगता ! घंटों तक यही सिलसिला चलता रहा. दिन से रात हो गयी. अब उसे भूख की याद आई, प्यास की भी याद आई ! रेगिस्तान में दिन में जितनी भयंकर गर्मी, रात में उतनी ही कातिलाना ठंड ! बड़बड़ाने से ध्यान बँटा , तब ठंड भी उसे अपने तर्कों की ही तरह भेदक मालूम हुई !
अब उसे ईश्वर के अस्तित्व से ज्यादा अपने अस्तित्व की चिंता हुई ! ठण्ड से बचने के लिए कोई सुरक्षित स्थान न दिखा. फिर नज़र उन पत्थरों के ढेर पर गयी जो लोगों ने उस पर फेकें थे. उन्हीं में से छाँट कर एक काम चलाऊ गुफानुमा ढाँचा बना कर जैसे तैसे रात गुजारी. भूख के बारे में सोचता हुआ बेहोश हो गया.
अगले दिन होश आया तो खुद को बीच सफ़र में एक गाड़ी के अंदर पाया. जाने कहाँ से उस वीरान जगह से गुजरते वक़्त, कुछ सैलानियों की नज़र उस पर पड़ गयी थी ! खाना भी नसीब हो गया, और पानी भी !रात को अपने प्राण बचाने में उसे कुछ योगदान उस जुगाडिया गुफा का भी लगा ! खाते खाते वो सोच रहा था, कमबख्त कुछ पत्थर तो बड़े काम के निकले !
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