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Monday, May 27, 2013

बाल-कविता : एक दो तीन चार .. !

बहुत दिनों से ड्राफ्ट में पड़ी हुई थी तो सोचा इसी से बिस्मिल्लाह किया जाए :)

१ २ ३ ४
शुरू हुई गिनती, राजकुमार !

५ ६ ७ ८
ग़म को मारो, जोर से लात !

९ १० ११ १२
तू मेरा प्यारा, राजदुलारा !

१३ १४ १५ १६
बता क्या था, मैंने बोला ?

१७ १८ १९ २०
और उस के, बाद इक्कीस !

२१ २२ २३ २४
शोर को अंग्रेजी  में noise !

२५ २६ २७ २८
बातें  करना nice nice   !


२९ ३० ३१ ३२
करते रहना हरदम कोशिश !

३३ ३४ ३५ ३६
पहलवान करता, रोज है वर्जिश !

३७ ३८ ३९ ४०
तगड़े  होगे, करना मालिश !

४१ ४२ ४३ ४४
चमकाओ  जूतें, करके पौलिश !

४५ ४६ ४७ ४८
कितनी अच्छी, होती बारिश !

४९ ५० ५१ ५२
राम ने वध किया था रावण !

५३ ५४ ५५ ५६
कितना प्यरा, होता बचपन !

५७ ५८ ५९ ६०
ख़ुशी से देना, जीवन काट !

६१ ६२ ६३ ६४
average हिंदी में हो औसत !

६५ ६६ ६७ ६८

भागी भैंस, देखी उसने लठ !

६९ ७० ७१ ७२

धीरे धीरे होते बेहतर !

७३ ७४ ७५ ७६
खुद को कभी, न समझो कमतर !

७७ ७८ ७९ ८०
कितनी प्यारी, मेरी बच्ची !

८१ ८२ ८३ ८४
नींद न पूरी, आए उबासी !

८५ ८६ ८७ ८८
हाथ में मूँह  , जो आए खांसी!

८९ ९० ९१ ९२
टॉफी लाला, की दुकान में !

९३ ९४ ९५ ९६
दोस्त आए, दोस्त के काम में !

९७ ९८ ९९ १००

गिनती ख़तम, अब खुश हो !

Sunday, November 21, 2010

बाल-कविता (हास्य) : आँकड़ेबाजी ( Bal Hasya Kavita - Majaal )

थोड़ी आँकड़ेबाजी, थोडा हास्य, थोडा दर्शन, और थोड़ा बचपना ....

एक बार की है बात,
छोटू और सच, दोनों साथ.
झूठ ने आ कर किया कबाड़ा,
तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा !
छोटू बोले झूठे भाई,
आओ बैठो चारपाई.
झूठ बोला नहीं रे यारा,
चाहूँ सुविधा पाँच सितारा !
छोटू सोचा इतना नखरा,
झूठ का अंदाज़ उसको अखरा.
पहले रह गया हक्का बक्का,
फिर छोटू ने मारा छक्का !
भाई तुम मेरा  निभाना,
माँ देती खर्चा बस आठ आना !
ये सुन झूठ ने किया बहाना,
और हो गया वो नौ दो ग्याहरह !
सच छोटू का सच्चा संगी,
झूठ  तो निकला दस नंबरी !
सच और छोटू हमेशा यारा,
और जिंदगी के हुए पौ बारह !

Monday, October 4, 2010

मोटूराम ! बाल कविता (हास्य) ( Bal Hasya Kavita - Majaal )

मोटूराम ! मोटूराम !
दिन भर खाते जाए जाम,
पेट को न दे जरा आराम,
मोटूराम ! मोटूराम !

स्कूल जो जाए मोटूराम,
दोस्त सताए खुलेआम,
मोटू, तू है तोंदूराम  !
हमारी  कमर, तेरा  गोदाम !

तैश में आएँ मोटूराम !
भागे पीछे सरेआम,
पर बाकी सब पतलूराम !
पीछे रह जाएँ मोटूराम !

रोते घर आएँ मोटूराम,
सर उठा लें पूरा धाम,
माँ पुचकारे छोटूराम,
मत रो बेटा , खा ले आम !

जब जब रोतें मोटूराम,
तब तब सूते जाए आम,
और करें कुछ, काम न धाम,
मुटियाते जाएँ मोटूराम !

एक दिन पेट में उठा संग्राम !
डाक्टर के पास मोटूराम,
सुई लगी, चिल्लाए ' राम' !
' राम, राम ! हाए राम !'

तब जाने  सेहत के दाम,
अब हर रोज़ करें व्यायाम,
धीरे धीरे घटा वज़न,
पतले हो गए मोटूराम !

Wednesday, September 29, 2010

ऐसे करतें है तुकबंदी - बाल कविता (हास्य), ( Bal Hasya Kavita - Majaal )

एक दिन लाल हमारा  चंदी,
पुछा हमसे बात एक चंगी,
पापा, हमको भी समझाओ,
कैसे करते है तुकबंदी ?

 " सबसे पहले जोड़ी बनती,
एक जैसे शब्दों की फंदी,
जैसे की समझ लो बेटा,
चंदी, मंदी, बंदी, झंडी.

फिर है करतें कोशिशें हम,
चिपका दे उनको, जैसे की गम,
जुड़े ऐसे, की बात लगे दम,
मतलब निकले, गुदगुद हरदम,

चंदी ने देखे दिन मंदी,
सोचा की लगा ले  बंदी,
राहत मिली, जब लेनदारों ने,
दिखा  दी उसको, हरी झंडी,
ऐसे करतें है तुकबंदी ! "

" ये तो पापा बड़ा झमेला,
इतने सब शब्दों का मेला,
लगता मुझे बड़ा मुश्किल ये,
कैसे कर पाऊंगा अकेला ? "

" विचार भी होते थोड़े सनकी,
सोच न उठती जैसे नंदी,
तुम भी ज्यादा न अक्ल  भिड़ना,
की गाय नंदी, या बैल नंदी !
धीरी धीरे आदत पड़ती,
चलना सीखे नंदी पगडंडी,
फिर न पीटना पड़े है इसको,
बस काफी, कि देखा दो डंडी,
खुद ही उठ चल पड़ती नंदी !
ऐसे बनती है तुकबंदी ! "

" अच्छा पापा मैंने समझी,
अब मैं कोशिश करता तुकबंदी,
चंदी, मंदी, झंडी जैसा,
एक और शब्द भी होता - गंदी ! "

" ना ना मेरे बच्चे  चंदी,
न करते बातें गंदी गंदी !
ऐसे न करते तुकबंदी ! "

Friday, September 24, 2010

'बंटी की बज गयी घंटी !' बाल कविता (हास्य) ( Bal Hasya Kavita - Majaal )

एक दिन बंटी,
खेल रहा था अंटी,
पिताजी ने देखा,
मार दी डंडी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब न खेलेगा अंटी !

एक दिन बंटी,
जाता था पगडंडी,
पगडंडी में बंटी को,
दिख गयी फंटी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब रोज जाता पगडंडी !

बंटी गया मंडी,
ख्यालों में थी फंटी,
चवन्नी की चीज़,
खरीद ली अठन्नी,
माताजी को बताया,
पड़ गयी चमटी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब न मंडी, न फंटी !

एक दिन बंटी,
लेने तेल अरंडी,
दाम न चुकाए,
दुकानदार बना  चंडी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब न करता बेमंटी  !

एक दिन बंटी,
पीने गया शिकंजी,
आईने में देखा,
समझा खुद को  तोप  तमंची,
पहलवान से भिड़  गया,
उसने दो तीन जड़ दी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब न बनता घमंडी !

एक दिन बंटी,
खेलता था धुलंडी,
रंग गया आँख  में,
दो दिन तक अंधी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब न रंग, न धुलंडी !

बड़ा हुआ बंटी,
अब रहा न सनकी,
सबका  प्यारा बंटी,
राज दुलारा बंटी,
समय रहते उसकी,
अब बज जाती है घंटी,
इसलिए अब बंटी,
न करता कुछ अंड बंडी !
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