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Thursday, August 15, 2013

शायरी - है मोहब्बत के सिवा और चारा क्या ?!

ग़मों का है कोई किनारा क्या ?
है उम्मीदों के बिना गुज़ारा क्या ?!

फूलों की खुशबू, बच्चों की मुस्कुराहट,
उम्मीदों को चाहिए और  सहारा क्या ?!

बिना आपके हमारा गुज़ारा क्या ?
करियेगा हमसे दोस्ती दुबारा  क्या ?!

जब दिल मिले, गिले शिकवे सब दूर हुए,
सब एक हुआ, उसका क्या, हमारा क्या ?!

दौरे-नफ़रत, जाते जाते ,  ये कह गया 'मजाल',
"है मोहब्बत के सिवा  और  चारा क्या ?!" 

Saturday, January 15, 2011

शायरी पर शायरी (Shayari - Majaal )

हमें सोचा की बस बनी,
रही वो जस की तस बनी !

जब तक जस्बात जब्त थे,
हालत रहमो तरस  बनी !

गर्मी थी, बेकसी अन्दर,
बाहर सुकून-ए-खस बनी !

कभी निकली बनके महक,
कभी मवाद-ए- पस बनी !

ग़ालिब ताउम्र जुटे 'मजाल',
तब जाकर ढंग की दस बनी !

Friday, January 7, 2011

शायरी (Shayari - Majaal)

जिंदगी एक शगल है,
कई  चीज़ों में दखल है !

इधर उधर जो  ढूँढते,
ख़ुशी  तुम्हारे बगल है !

सोचे वादी खाली इन दिनों,
सुकूँ की चहल पहल है !


अरमान गोया कपड़े हो,
हर वक़्त अदल बदल है !

फिर से फुर्सत फिराक में,
नतीजा वही, ग़ज़ल है !

जिंदगी पूरी होती 'मजाल'  
ये मुद्दा क्या दरअसल है  ?!

Tuesday, December 21, 2010

शायरी ( Shayari - Majaal )

बस खयालों में ही जिंदगी न गढ़ी जाए,
बातें कुछ तजुर्बे से भी कही जाए !

ये हालत इतने बुरे भी कहाँ यारों,
अखबार-ए-जिंदगी भी कभी पढ़ी जाए !

 औरों की खबर हुज़ूर होगी बाद में,
पहले अपने ईमाँ  से तो जंग लड़ी जाए !

उम्मीद माँगे कहाँ बड़ा सूरमा ?
'मजाल' से ही गिनती शुरू करी जाए !

Sunday, December 19, 2010

फलसफाई, शायरी और चुटकियाँ ( Shayari - Majaal )

ये रिश्ता चलता रहेगा  बढ़िया जाने,
अपनी कहें, हमारा नज़रिया जाने !

गर राज़ रखना है तो खुद में दफ़्न कर,
कहा एक को तो फिर सारी दुनिया जाने !

उनकी  शराफत के किस्से किनसे सुनेंगे ?
रमिया जाने उनको या फिर छमिया जाने !

अहसान लेने की नियत नहीं 'मजाल', 
इन मामलों में हमें कुछ बनिया जाने !

Friday, December 17, 2010

शायरी ( Shayari - Majaal )

आलती पालती बना कर बैठी है,
फुर्सत तबीयत से आ कर बैठी है !

कद्रदान बचे गिने चुने जिंदगी,
और तू हमीं से मुँह फुला कर बैठी है !

मुगालातें टलें  तब तो बरी हो,
सुकूं को कब से दबा कर बैठी है !

कमबख्त पुरानी आदतें न छूटती,
जाने क्या घुट्टी खिला कर बैठी है !

अब कोसती है ग़म को क्यों जनम दिया,
अभी अभी बच्चा सुला कर बैठी है !

'मजाल' आज जेब की फिकर करो,
मोहतर्मा  मुस्कां सजा कर बैठी है !

Saturday, December 11, 2010

शायरी - यादों की चुस्कियाँ ( Shayari - Majaal )

कुछ घरेलु किस्म की शायरी ;)

मौके बेमौके हो जाते मेहरबान से,
बच कर ही रहिये ऐसे कद्रदान से !
 
जली जुबान दिन भर रखेगी परेशान,
यादों की चुस्कियाँ लीजिये इत्मीनान से !

नज़रंदाज़ कर करके संभाले है रिश्ते,
एक से सुना, निकला दूसरे कान से !

सुलझेगा न मुद्दा, नुमाइश ही होगी,
खबर न बाहर जाने पाए मकान से !

सबकुछ मयस्सर, फिर भी क्या कमी है ?
'मजाल' कभी कभी जिंदगी ताकते हैरान से !

Wednesday, December 8, 2010

ग़ज़ल हो पूरी कैसे, दोपहर होने के पहले, सोच हो जाती रुखसत , बहर होने के पहले ! ( Shayari - Majaal )

ग़ज़ल हो पूरी कैसे, दोपहर होने के पहले ?
सोच हो जाती रुखसत , बहर होने के पहले !

या तो फलसफे ही, कर गए दगाबाजी,
याक़ी  खामोश तूफाँ, कहर होने के पहले !

साँप का काटा, या लत का मारा,
दर्द मजा देता, जहर होने के पहले !

कागज़ी शेर तो खूब कहे  'मजाल',
अँधेरे का क्या करें, सहर होने  के पहले !!

Monday, December 6, 2010

यहाँ तो हर शेर ही वाह-वा है, ऐसी दाद से हमें तौ-बा है ! ( Shayari - Majaal )

यहाँ तो हर शेर ही वाह-वा है !
ऐसी दाद से,  हमें तौ-बा है !!

जो दौर दोनों तरफ से तारीफों का ,
जो गौर करिएगा, बस एक सौदा है !

गलतफहमियाँ, मुगालतें है पनपी जो,
उखाड़ जड़ करिए, अभी पौंधा है !

शर्मों-हया, बुर्कापरस्त महफ़िल में,
मजाल सा एक कुछ कहीं कौंधा है.

Sunday, December 5, 2010

थोड़ा हास्य, थोड़ा दर्शन : शायरी-ए-Fusion ( Shayari - Majaal )

जिंदगी का भरोसा नहीं,  कब क्या, दिखा दे,
Windows का नया version आया हो गोया !

सवाल-ए-जिंदगी, क्या करें, क्या न करें,
Abort,Retry,Fail ? सामने आया हो गोया !

अचानक हो गया वो यूँ दुनिया से रुखसत,
Ctrl Alt Del  किसी ने  दबाया हो गया !

धीरे धीरे हुए सपने मक्कमल ऐसे,
Inkjet से print out बाहर आया हो गया !

दिल बहला सभी का आगे बढ़ जाते 'मजाल',
फलसफा Fwd Email  का अपनाया हो गोया !

Thursday, December 2, 2010

शायरी - तजुर्बा ( Shayari - Majaal )

बहुत ही ऊँचें दाम की निकली,
चीज़ मगर वो काम की निकली !

शुरू किया आज़माना मुश्किल,
ज्यादातर बस नाम की निकली !

मौका मिला तो सरपट भागी,
ख्वाहिशें थी लगाम की निकली !


अँधेरा   देखा उजाले में जब ,
सुबह भी दिखी शाम की निकली !

फ़िज़ूल-ए-फितूर हटा दे गर तो,
बाकी जिंदगी आराम की निकली !

महोब्बत से पाई जन्नत 'मजाल',
बातें झूठी शैतान  की निकली !

Monday, November 29, 2010

शायरी - बिल तुम भरो, कभी हम भरें ! ( Shayari - Majaal )

कुछ तुमे भरो, कुछ हम भरे,
तब जा कर ये, जखम  भरें !

हुआ लबालब, छलक जाएगा,
ये आँखें अश्क, कुछ कम भरें !

बच कर ही रहना उससे तुम,
अक्सर वफ़ा का वो दम भरे !

काम पीने के तक न आएगा,
क्यों समंदर-ए-ग़म भरे ?!

रहे दोस्ती ये कायम 'मजाल',
बिल तुम भरो, कभी हम भरें !

Friday, November 26, 2010

शायरी : कुछ इस तरह से हम ये दुनिया समझे, समझा खुदी को, और पूरा जहाँ समझे ! ( Shayari - Majaal )

कुछ इस तरह से हम ये दुनिया समझे,
समझा खुदी को, और पूरा जहाँ समझे !

समझाने वाले समझ गए इशारों में,
जो न समझे, हज़ारों में भी ना समझे !

ना दोस्ती किसी से, ना  की दुश्मनी ही,
सब अपनी तरफ से ना, कभी हाँ समझे !

एक पल में लगा यूँ, समझ लिया सबकुछ,
औए अगले पल लगा, अभी कहाँ समझे ?!

'मजाल' अपनी ख़ुशी अपने हाथों में,  
खुदी से पा कर  दाद जाँहपना समझे !

Wednesday, November 24, 2010

शायरी ( Shayari - Majaal )

यकीनन असर हर एक दुआ निकलेगा,
नतीजा उम्दा हर इम्तिहा निकलेगा !

चुन ले एक जगह, खोदते रह जिंदगी,
कभी न कभी तो वहाँ कुआँ निकलेगा !


शर्मिंदा थोड़े से वो, थोड़े से बेयकीं,
सोचा नहीं था, पहुँचा हुआ निकलेगा !

शामिल न हो आग में,  वो खुद ही बुझेगी,
अपने दम पे आखिर, कितना धुँआ निकलेगा ?!

परवरिश ही तूने ऐसी,  पाई है 'मजाल',
निकलेगा भी तो, कितना मुआ निकलेगा ?!

Monday, November 22, 2010

शायरी : अक्सर गुजरते है हम , तमन्ना-ए-बाज़ार से, हो नसीब तो खरीद के, वर्ना बस दीदार से ! ( Shayari - Majaal )

अक्सर गुजरते है हम , तमन्ना-ए-बाज़ार से,
हो नसीब तो खरीद के, वर्ना बस दीदार से !

या खुदा तेरी आबरू, फिर पड़ी खतरे में है,
दोनों तरफ लोग खड़े, दिखते है तैयार से !

दुनिया रोए तो रोए , गरीब तो खुश बेपनाह,
पक्का घर मिल ही गया, आखिर इस मजार से !

रखते स्वाद समंदर, आँसू को आजमाओं तो,
लेना चाहे तजुर्बा जो, कोई अपनी हार से !

'मजाल' को कबूल,  चाहे जितनी लानत दीजिये ,
बस इतनी सी इल्तिजा , की कहिये जरा प्यार से !

Saturday, November 20, 2010

कुछ तुकबंदी, कुछ शायरी, और कुछ फलसफे ...( Shayari - Majaal )

मिला एक, चाहे दो गया,
हँसता ही चला वो गया !

यादें कुरेद हासिल हो क्या ?
वापिस कब आया, जो गया ?!

मैला सा कुछ मलाल था,
आँसू बहा, और धो गया !

पूरी जिंदगी आगे बची,
ऐसा भी क्या है खो गया ?!

एक उम्र बाद पता चला,
क्या बीज  था वो  बो गया !

देखी जिंदगी,  हुई हैरानगी,
सब खुद ब खुद ही हो गया !

ये सोच चीज़ कातिलाना,
समझ फँसा तू,  तो गया !
 
इलाजे ग़म आसाँ 'मजाल',
भरपेट खाया,  सो गया !

Friday, November 19, 2010

शायरी : रोने पे हँसीं आई ... ! ( Shayari - Majaal )

फैलेगी धीरे धीरे,
खिलेगा पूरा चेहरा,
दिखा रहा होठों के,
एक कोने पे हँसीं आई ... !

किसलिए जिए या,
किसलिए मर जाएँ,
हर वजह की बेवजह,
होने पे हँसीं आई ... !

कम ही किया सचमुच,
बस सोच कर हुए खुश,
ख़यालों ख़्वाबों, गोया,
सोने में हँसीं आई .. ! 

तेज़ हाथ छटपटा  के,
नथुने दोनों फुला के,
कुछ ऐसे रोया बच्चा की,
रोने पे हँसीं आई ...!

जो तबीयत हुई मनमौजी,
उसने तब हर जगह खोजी,
फिर तो सुई में धागा भी,
पिरोने में हँसी आई .. !

अक्ल लगा लगा के,
समझ आखिर में आया,
की दरअसल इस अक्ल के,
खोने पे हँसीं आई .. !

'मजाल' क्या मिट्टी थी,
जाने क्या माली था,
जो भी बोया उसने ,
हर बोने पे हँसीं आई ...

Tuesday, November 16, 2010

शायरी : ' आखिर का आखिर क्या, इस सोच से शातिर क्या ' (Shayari - Majaal)

आखिर का आखिर क्या ?!
इस सोच से शातिर क्या ?!

खाँमखाँ ताउम्र फिकर की,
'जो हो गया, तो फिर क्या' ?!

तलवार या क़त्ल-ए-खंज़र,
अब करे आरज़ू जाहिर क्या ?!

ग़म भी हो ही गया रुख्सत,
उसकी भी करते खातिर क्या ?!

जिंदगी लतीफा है हँस लो,
क्या पैर 'मजाल' सिर क्या ?!

Sunday, November 14, 2010

शायरी - ' यूँ ही रस्ते मिल जाए कोई, बेवजह रिश्ते निभाए कोई ! ' (Shayari - Majaal)

यूँ ही रस्ते मिल जाए कोई,
बेवजह रिश्ते निभाए कोई !

कईयों को देखा है रोते हुए,
बस इसलिए की हँसाए कोई !

नर्म बिस्तर पर नींद कहाँ ?
माँ जैसी लोरी सुनाए कोई !  

इश्क, रश्क, अश्क, खर्च,
बीमारियों से बचाए कोई !

मस्जिद मंदिर में मिला नहीं,
अबके सही पता बताए कोई !

कैसे मना करोगे 'मजाल',
बच्चो सा मुस्कुराए कोई !

Thursday, November 11, 2010

शायरी : वो हमसे कुछ ख़ास नहीं मिले, लगता है, अहसास नहीं मिले ! (Shayari - Majaal)

वो हमसे कुछ ख़ास नहीं मिले,
लगता है, अहसास नहीं मिले !

और दिनों मिलते थे जैसे,
वैसे हमसे आज नहीं मिलें !

इंसा और जानवर का फासला,
तबीयत, कभी हालात नहीं मिले !

कोई तलाशे, बादे मौत ज़िन्दगी,
किसी को, आगाज़ नहीं मिले !

सभी ने हाँकी अपने मन से फकत ,
किसी को पर, वो राज़ नहीं मिले !

कितनों में छुपे, मीर ग़ालिब 'मजाल',
बस सोच को, अल्फाज़ नहीं मिले !
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