दावा दारु है लिखते संग संग,
राज़ है इसका कुछ कुछ ऐसा,
थोडा मिला कर दिया जाए जो,
दारु का असर, दवा के जैसा !
है भेद पर इससे भी कुछ गहरा,
अँधेरी हद पर बसे सवेरा,
सीधे सीधे समझ न आए,
जिंदगी 'मजाल', खेल है टेढ़ा !
आए मौसम पतझड़, सावन,
कई मिले और बिछड़े साथी,
आए, रुके और बीत गए सब,
पल खुशियों के, या ग़म साथी.
जिंदगी का खेल पेचीदा ,
उलझन, सुलझन मिल जुल आए,
कभी अपने दे जाएँ दगा, और,
कभी बेगाने मदद कर जाए !
सीखा उन्होंने धीरे धीरे,
रम से ग़म, होता नहीं कम,
पीना पड़ता, ग़म सीधे ही,
और थोड़े सलीके से सनम.
बदती उम्र ने सिखा दिया सलीका,
बातें वो, अब दिल पर ले नहीं जीतें,
लेतें है गम, मज़ाक के साथ घोल कर,
कि भाईसाहब कभी 'नीट' नहीं पीते!