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Thursday, December 9, 2010

फुटकर हास्य कविताएँ और ' मजालिया अढाईपंती '

यूँ तो हास्य होता है फकत हास्य, और उसका लक्ष्य होता सिर्फ मनोरंजन, मगर किसी भी चीज़ को विधा का रूप दे कर उसकी विवेचना करी जा सकती है. जैसे की होने को सिर्फ एक लड़की है, पर जो शायरों  की नज़र पड़ी, तो फिर जुल्फों से ले कर होंठ, कमर से ले कर आँखे, एक एक पर चुन चुन कर जिक्र, और कमबख्त तकरीबन हर अदा पर नाजुक से नाजुक ख्याल को शेरों में बाँध लेतें है ! यही बात हास्य पर भी लागू होती है. हास्य कविता चाहे शुद्ध हास्य कविता हो या दर्शन, व्यंग्य को या  गंभीर काला हास्य, अलग अलग तरीको से उसको निभाया जा सकता है.

अब होता यह है की किसी एक तरीके का दुहराव, आपको  धीरे धीरे उससे उकता देता है, और इसीलिए हर एक  विधा में समय समय पर कुछ नयापन लाना जरूरी है. इसी परंपरा को जारी रखते हुए मियाँ मजाल ने एक नयी हास्य  विधा का इजात करने की सोची है ! इसको हम कहेंगे 'अढाईपंती' ! 

अंग्रेजी में जिसे poor jokes या pj कहते है, इसे उसी  का व्यवस्थित रूप समझिये. इसकी शैली जापानी हाईकू (haiku ) जैसी  है. हाइकू एक छोटी सी  रचना होती है जिसमे तीन लाइनें होती है. इन  तीन लाइनों के कुछ नियम होते है, पर यहाँ हम सिर्फ अढाईपंती के नियमों के बारें में बात करेंगे. तो कुल मिला कर अढाईपंती हास्य विधा वो हुई जिसमे :

१. हाइकू की तीन लाइन की तर्ज़ पर ही ढाई ( दो और आधा ) लाइन का  मीटर हो.
२. पहली दो  पंक्तियाँ या लाइनें तुकबंदी में हो, जो की भूमिका बाँधें  , और तीसरी (आधी लाइन -अढाई )  एक अचानक उटपटांग,   कुछ-तोबी, poor joke  किस्म का ब्रह्म वाक्य (!)  हो, जिससे  की हास्य का सर्जन हो.

उदहारण के लिए :


तुम और मैं, मैं और तुम,
मैं और तुम, तुम और मैं,
एक दूजे के लिए.

ऊपर की रचना को लें, तो उसमे पहली और दूसरी लाइनों  में ६-६ शब्द है, और वो परस्पर तुकबंदी में लग रहे है. तीसरी लाइन में चार शब्द है, ६ के मुकाबले ४ को  तकरीबन आधा मन जा सकता है, तो इस तरह यह हुई अढाई रचना. अब इस रचना में एक भाव है जो की बड़ा स्वाभाविक सा है - हम और  तुम, एक दूजे के लिए. पहली दो  पंक्तियों  के बाद कोई तीसरी पंक्ति पढ़े, तो उसे कोई ख़ास हैरानी नहीं होगी, क्योकि 'हम तुम एक दोजे के लिए' भाव एक बड़ी ही आम सी बात है. अब इस अढाई रचना में कुछ-तोभी-पना, कुछ ऊटपटाँग, कुछ absurd किस्म का रूप अढाई'पंती'  कहलाएगा. जैसे की :

तुम और मैं, मैं और तुम,
मैं और तुम, तुम और मैं,
तुक में है !!!


अब इस रचना में 'तुक में है'  ब्रह्म वाक्य की तरह रचना को पूरी तरह से उल्जहूल बन देता है की यह क्या बात हुई ! आप उम्मीद कर रहे है कुछ रोमांटिक चीज़ की, और कोई आपके मूड की ऐसी तैसी कर दे. तो इस चीज़ पर आप बोल सकते है की - ये क्या अढाईपंती है !

अभी एक किस्त और झेलना बाकी है, उसके लिए आपको कुछ दिनों की महौलत दी जाती है. हम अपना हुनर थोड़ा और मकम्मल कर लें, बाकी की पिक्चर इंटरवेल  के बाद ! 





   
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