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Saturday, October 23, 2010

एक ग़ज़ल

बस रश्क, बीमारी, लोगों की दुहाई रखी है,
जिंदगी भर की तूने, ये क्या कमाई रखी है ?!

अब हमें मालूम पड़ा, उसकी परेशानी का सबब,
दूसरों से बहुत उसने , उम्मीदें  लगाईं रखी है !

वो पूछते है हमसे, क्या है बुलंदी का राज ?
दिखा दे फिर अदा वो जो, बनी बनाई रखी है !

जहाँ ये देख हैं चुके , जहन्नुम से क्या डरें ?
वहाँ  भी कौन सी बची, नयी  बुराई रखी है ?!

है खेल तेरा क्या , कौन समझ पाया खुदा ?
जादू में गज़ब की तूने , अपनी सफाई रखी है !

जो मुस्कुरादे आज तू ,  है तेरी क्या 'मजाल'  ?
खुशियों की पंडित ने पहले,  तारीख बताई रखी है !
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