बस रश्क, बीमारी, लोगों की दुहाई रखी है,
जिंदगी भर की तूने, ये क्या कमाई रखी है ?!
अब हमें मालूम पड़ा, उसकी परेशानी का सबब,
दूसरों से बहुत उसने , उम्मीदें लगाईं रखी है !
वो पूछते है हमसे, क्या है बुलंदी का राज ?
दिखा दे फिर अदा वो जो, बनी बनाई रखी है !
जहाँ ये देख हैं चुके , जहन्नुम से क्या डरें ?
वहाँ भी कौन सी बची, नयी बुराई रखी है ?!
है खेल तेरा क्या , कौन समझ पाया खुदा ?
जादू में गज़ब की तूने , अपनी सफाई रखी है !
जो मुस्कुरादे आज तू , है तेरी क्या 'मजाल' ?
खुशियों की पंडित ने पहले, तारीख बताई रखी है !