वक़्त ही वक़्त कमबख्त ! हास्य कविता,व्यंग्य,शायरी व अन्य दिमागी खुराफतों का संकलन (Majaal)
वक़्त ही वक़्त कमबख्त है भाई, क्या कीजे गर न कीजे कविताई !
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Saturday, October 23, 2010
एक ग़ज़ल
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बस रश्क, बीमारी, लोगों की दुहाई रखी है, जिंदगी भर की तूने, ये क्या कमाई रखी है ?! अब हमें मालूम पड़ा, उसकी परेशानी का सबब, दूसरों से ब...
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