यदि रख सके तू होश, जब दे रहे सब दोष,
विश्वास धरे खुद पर, हो किसी के प्रति न रोष।
यदि सब तुझको झुठलाएँ, फिर भी रहे तू शांत,
रखे मान उनके संदेह का, रहकर सहज सभ्रांत।
यदि धर सके तू धैर्य, बिन किए उसका बखान,
अपने अंदर समेटे जो, है सनातनी आयाम!
यदि घृणा करे कोई तुझसे, पर तुझमें द्वेष न जागे,
न करे आडंबर कोई, न वाणी से ज्ञान बागे।
यदि सपने देख सके तू, पर बने न उनका दास,
विचार करे अवश्य, न करे पर वो तुझ पर राज!
यदि क्षण शगुन के आए, अथवा हो क्षण आलाप,
न अधिक विजय को तूल, न पराजय का संताप!
यदि जान सके वो सच तू, बस एक अटल जो यारा,
मा-या नगरी में जिसने, कितनों को है भर-माया ।
या देख सके सपने बिखरे - जिन पर जीवन था वारा,
और फिर जर्जर औज़ारों से, निर्माण करें दोबारा।
यदि सब-कुछ दांव लगाने का, रखता है तू बूता,
और खो कर सब फिर शांत ह्रदय से, बांधे फीता जूता!
यदि हृदय, स्नायु, और मन, जब तेरा साथ छोड़ जाए,
फिर भी एक इच्छा कहे,"थकना नहीं - बढ़ते जाएं।"
यदि शूरवीर रहे तू भीड़ में, पर धरे धर्म-अनुशासन,
और मिले सम्राटों से तू, रख कर खुद को साधारण ।
यदि न शत्रु तुझे छल सके, न प्रियजन से तू रूठा,
माने सबको तू अपना, पर विच्छेदों से न टूटा।
यदि हर क्षण को दे सके तू, गहन श्वासो की दौड़ ,
तो यह पूरी दुनिया तेरी, न किसी से तेरी होड़!
'मजाल' तत्व से अवगत, मेरे प्यारे 'तथागत',
अपने हाथ फैलाए दोनों, जीवन करता तेरा स्वागत..!
1 comment:
अब एक दो से ब्लॉग पर आ रहे हो ४०-५० तक आ जाओ … ब्लॉग को एक्टिव कर दो, अच्छा लगा आपका ब्लॉग पर आना
Post a Comment