Wednesday, November 24, 2010

शायरी ( Shayari - Majaal )

यकीनन असर हर एक दुआ निकलेगा,
नतीजा उम्दा हर इम्तिहा निकलेगा !

चुन ले एक जगह, खोदते रह जिंदगी,
कभी न कभी तो वहाँ कुआँ निकलेगा !


शर्मिंदा थोड़े से वो, थोड़े से बेयकीं,
सोचा नहीं था, पहुँचा हुआ निकलेगा !

शामिल न हो आग में,  वो खुद ही बुझेगी,
अपने दम पे आखिर, कितना धुँआ निकलेगा ?!

परवरिश ही तूने ऐसी,  पाई है 'मजाल',
निकलेगा भी तो, कितना मुआ निकलेगा ?!

7 comments:

संजय @ मो सम कौन... said...

बहुत खूब जी, एक एक शेर तजुरबे से निकला है।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

कोशिश करने में हर्ज ही क्या है...

निर्मला कपिला said...

चुन ले एक जगह, खोदते रह जिंदगी,
कभी न कभी तो वहाँ कुआँ निकलेगा !
बहुत खूब। उमदा शेर। शुभकामनायें।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

शामिल न हो आग में, वो खुद ही बुझेगी,
अपने दम पे आखिर, कितना धुँआ निकलेगा ?!

बहुत नेक सलाह ...

Majaal said...

आप सभी का ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार ....

उम्मतें said...

आज अपनी पसंद खास तीसरा और चौथा शेर !

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

शामिल न हो आग में, वो खुद ही बुझेगी,
अपने दम पे आखिर, कितना धुँआ निकलेगा ?!

बहुत बहुत खूब!

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