Monday, November 29, 2010

शायरी - बिल तुम भरो, कभी हम भरें ! ( Shayari - Majaal )

कुछ तुमे भरो, कुछ हम भरे,
तब जा कर ये, जखम  भरें !

हुआ लबालब, छलक जाएगा,
ये आँखें अश्क, कुछ कम भरें !

बच कर ही रहना उससे तुम,
अक्सर वफ़ा का वो दम भरे !

काम पीने के तक न आएगा,
क्यों समंदर-ए-ग़म भरे ?!

रहे दोस्ती ये कायम 'मजाल',
बिल तुम भरो, कभी हम भरें !

13 comments:

Administrator said...

रहे दोस्ती ये कायम 'मजाल',
बिल तुम भरो, कभी हम भरें !

इसी तरह दोस्ती निभती है जी

Administrator said...

रहे दोस्ती ये कायम 'मजाल',
बिल तुम भरो, कभी हम भरें !

इसी तरह दोस्ती निभती है जी

Deepak Saini said...

वाह वाह मजाल साहब क्या बात
बिल तुम भरो, कभी हम भरें
वाह वाह

चुंनिंदा शायरी said...

पहले और आखिरी शेर में जमीन आसमान की तबीयत का फर्क है !

मनोज कुमार said...

सही है, जखम मिलकर बांटने से जल्दी भर जाता है। उम्दा ग़ज़ल। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार::पूर्णता

arvind said...

काम पीने के तक न आएगा,
क्यों समंदर-ए-ग़म भरे ?!
...vaah badhiya sher.

Majaal said...

आप सभी लोगों का ब्लॉग पर पधारने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बढ़िया बात ...ज़ख्म भी भरें और बिल भी ...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

bahut badhiya !

anshumala said...

आखरी लाइन भले मजाक में आप ने कही हो पर हर बार मजाक में एक गंभीर बात और सन्देश दे देते है | हम टिप्पणी भले मजाक वाली लाइन पर करे पर सन्देश ले लेते है |

अनुपमा पाठक said...

हुआ लबालब, छलक जाएगा,
ये आँखें अश्क, कुछ कम भरें !
वाह!

Anonymous said...

अच्छी ग़ज़ल...
आपका सवाल चर्चा मंच पर देखा...अपना ईमेल दें आपको भेज देता हूँ...


मेरे ब्लॉग पर भी पधारें..

Vivek Khosla said...

जब दिल जाते हैं मिल ,
तो चुक जाता है बिल .
और दो दोस्तों की शायरी देख कर ,
ये जमाना जाता है हिल !
अब इसके आगे तुम करो फिल ...:)
विवेक

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