Thursday, October 7, 2010

'ग़ोश्त' - काला हास्य (डार्क ह्यूमर / ब्लैक कॉमेडी )

'छिनाल है, पर माल है !',
ऐसा लोगों का, उसके बारे में,
ख्याल है.

हमने तो जितना देखा,
ठीक ही लगती है हमें,
लोगों को जाने क्यों,
उससे इतना ऐतराज है ?
  
'आपकी तो निकल पड़ी 'मजाल',
उसका संदेसा आया है,
हमें तो कमबख्त ने कभी,
दिन में भी नहीं पूछा,
आपको बड़ा रात को,
खाने में बुलाया है !
सुना है,
बहुतों को खुश कर चुकी है,
आप भी आजमाइए,
और अगले दिन, रात की कहानी,
हमें भी विस्तार से सुनाइए !'

रात का वक़्त था, उसका घर था,
हम थे अन्दर, बाहर अँधेरा,
एक छोटा सा, गोलमटोल बच्चा था उसका,
और निपट अकेली, वो थी बेवा.

बातें करते करते,
वो जरा कभी मुस्कुराए,
हमारा सोचना शुरू,
सोच कुलबुलाए, 
'क्या  मंसूबे बना रहीं है ?
पानी पिला रही  है,
तो क्यों पिला रही है ?!
चाहती क्या है आखिर ?
अन्दर क्या पका रही है ?'

उलझन भी यूँ बड़ी,
अजीब थी दोस्त,
एक तरफ कवि ह्रदय,
एक तरफ ग़ोश्त !
बदन में खरोच के निशाँ,
पर व्यवहार निर्दोष !
कमर में कुदरती लोच,
तो आँखों में भी संकोच !
'मजाल' बांधे मंसूबे,
या करें उन पर कोफ़्त !

पर अब 'मजाल' भी,
खोपड़ी शायराना,
कब तक आखिर सोच,
उधार की खाए ?
सामने थी वो,
हकीकत सी जाहिर,
कब तक फन्ने खाँ,
ख्याली घोड़े दौडाए ?

सोच चीज़ कुत्ती, वो भी पूरी पागल,
बच के रहिएगा,चोट कर जाएगी ,
खुद तो मरेगी ही काट कर आपको,
आपको भी मगर, पागल कर जाएगी !

जो जैसा है, वो है वैसा क्यों ?
छोड़िये जनाब, क्यों अक्ल  लड़ाइए ?
सामने बैठा था, गोलमटोल बच्चा,
चलिए, इसी से खेल कर,
अपना दिल बहलाइए !

जेब में रखी थी, हमने कुछ टॉफी,
उसको दी, और फिर दिल खो गया.
लगे फिर हम उसको कहानी सुनाने,
उसने सुनी ऐसे, की सुचमुच हो गया ! 
रखिये समझ को , बच्चो सा सरल 'मजाल',
टॉफी मिली, और बच्चा खुश हो गया !

अब हमने फिर से बेवा को देखा,
अब कुछ बैचनी न थी मगर,
अब बस करार था.
जिस्म में उसके, अब भी वही उभार था,
पर शायद नदारद,
अब हमारा विकार था ?!

अन्दर पनपी थी, एक सोच  कमीनी ,
खामखा वो हमें खा रही थी,
'ग़ोश्त' तल रहा था,
कोई हमारे ही अन्दर,
जो बदबू थी पकने की,
वहीँ से आ रही थी...

' तो मियां 'मजाल', कैसी रात बिताई ?
हुई कुछ वारदातें, कोई हाथापाई ?!
हमें भी किस्से रात के,
तबीयत से सुनाइये !'

'बोलने को तो जनाब, हमारे पास बहुत है,
पर क्यों इस तरह, वक़्त को गवाइएँ ? 
छोड़िये खुराफाती सोच को दौड़ाना,
लीजिये, खाइए टॉफी, और खुश हो जाइये   !'

17 comments:

संजय भास्‍कर said...

बेहतरीन सन्देश छिपा कर बहुत ही गहरी बातें की हैं आपने, हर बात बहुत ही सुन्दर लिखी है!

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर भाव |आपका सोच सराहनीय है |बधाई

Udan Tashtari said...

ब्लैक ह्यूमर ही लगा पूरा पढ़कर मजाल साहेब...

हास्यफुहार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

Unknown said...

अच्छी कविता
उम्दा निर्वाह !

Satish Saxena said...

"जहाँ तक हमें पता है कि आपकी एक टोली है"
किसी के प्रति एकतरफा राय कायम करना उस निर्दोष के प्रति सिर्फ और सिर्फ अन्याय ही होता है ....
अफ़सोस जनक !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पुरुष मानसिकता पर करारा कटाक्ष है

दिगम्बर नासवा said...

सच में काला मज़ा है ये ....

vandana gupta said...

संगीता जी ने सही कहा है।

arvind said...

'छिनाल है, पर माल है !',
ऐसा लोगों का, उसके बारे में,
ख्याल है.
...bevaak...bold...katu satya ko pagat karati rachna.aajkal ke adhiktar kaviyon me iski kami dekhi jaati hai.ve satya our bold creativity ko asleel samajhate hain.....bahut badhiya.

उम्मतें said...

बच्चों सी सोच रखने पर हामी !

संजय @ मो सम कौन... said...

डार्क ह्यूमर क्यों कहते हैं जी इसे? फ़ेयर एंड लवली है ये तो।
विकार या कमीनापन सोच में ही होता है। जब सोच शुद्ध हो गई, सब साफ़ दिखाई देता है।
भाई, ये सरलता, ये भोलापन। एक टाफ़ी हमें भी दो ना।

गजेन्द्र सिंह said...

बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने .......

पढ़िए और मुस्कुराइए :-
सही तरीके से सवाल पूछो ...

हास्यफुहार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति। नवरात्रा की हार्दिक शुभकामनाएं!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

ट़ाफई का स्वाद अच्छा लगा।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

ट़ाफी का स्वाद अच्छा लगा।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

ट़ाफी का स्वाद अच्छा लगा।

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