Friday, October 15, 2010

जिंदगी - दे दिए इम्तिहाँ सारे पढ़ाई समझ के .. !

ख़ुशी मिली, तो खा गए, मिठाई समझ के,
जो ग़म मिला, तो खा गए, दवाई समझ के !

किया दोस्तों को माफ़, बवाफ़ाई समझ के,
दुश्मनों को भी दी माफ़ी , छोटा भाई समझ के !

अच्छा वक़्त काटा, हुनर नाई समझ के,
बुरे वक़्त को भी काट दिया, कसाई समझ के !

सारी मौजों को निभा गए, शहनाई समझ के,
मुसीबतों को भी निभा गए, बूढ़ी माई समझ के !

मिली दाद, तो भुला दिया बढ़ाई समझ के,
जो तोहमत लगी, भुला दिया लड़ाई समझ के !

जिंदगी को चख़ लिया  मलाई समझ के,
मौत को भी चख लिया रिहाई समझ के !

बेशक़ वाकिफ थे, नतीजा-ए-जिंदगी 'मजाल',
पर सारे इम्तिहाँ दिए , पढ़ाई समझ के !

8 comments:

उस्ताद जी said...

2.5/10


तुकबंदी / टाईम पास

अनामिका की सदायें ...... said...

vaah ji kya baat hai

kash itni aasani se har baat ko nazarandaaz kar liya jata to kyu likhte ki de diye saare imtihaan padhayi samajh ke....

महेन्‍द्र वर्मा said...

कमाल की ग़ज़ल है...
एक मेरी तरफ से भी-
वक्त को काट लिया तन्हाई समझ के,
बेटे ने उड़ाया बाप की कमाई समझ के।

Dr.R.Ramkumar said...

अच्छा वक़्त काटा, हुनर नाई समझ के,
बुरे वक़्त को भी काट दिया, कसाई समझ के !

जिंदगी को चख़ लिया मलाई समझ के,
मौत को भी चख लिया रिहाई समझ के !


अच्छे कारण कार्य और अंतर्सबंधों का हास्य निर्वाह ..

उम्मतें said...

हमनें तो बस पढा इसे आपकी कमाई समझ के
उस्ताद जी निपटा गये गरीब की लुगाई समझ के

:)



[ मजाल साहब ख्याल नेक हैं कोई ना समझे तो क्या ? ]

निर्मला कपिला said...

अच्छा वक़्त काटा, हुनर नाई समझ के,
बुरे वक़्त को भी काट दिया, कसाई समझ के !

वक्त को काट लिया तन्हाई समझ के,
बेटे ने उड़ाया बाप की कमाई समझ के।
वाह वाह बहुत कमाल की सोच है। बधाई।

Majaal said...

आप सभी लोगों का ब्लॉग पर आने और टिपण्णी करने के लिए आभार .... !

Udan Tashtari said...

मिली दाद, तो भुला दिया बढ़ाई समझ के,
जो तोहमत लगी, भुला दिया लड़ाई समझ के

-सही है!

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