अनूठे लाल नाम से ही नहीं,
काम से भी अनूठे,
सब कुछ चखें जीवन में,
ताज़ा या झूठे.
शराब, शबाब, कबाब,
मिला बेहिसाब,
फिर भी जितना खाए साहब,
रह जाए भूखे !
एक दिन एक बाह्ममन से,
पड़ गया पाला.
उसने लाल साहब पर,
मौका देख जाल डाला.
' यजमान, थोड़ा करिए संकोच,
कुछ तो शर्माइये,
इस उम्र में यह हरकते,
देती नहीं शोभा,
अंतिम पड़ाव निकट है,
अब तो सुधर जाइए.
थोड़ा दान पुण्य करें,
तो बात बने.
करम दुरुस्त हो आपके,
जो थोड़ा व्रत धरें.
नारी को एक ही द्रष्टि से,
देखना करेगा व्यथित,
मुंहबोली ही बना लें जो,
एक बहिन, तो उचित ...'
अनूठे लाल को पंडित की,
बात कुछ जमी.
सोचा ससुरा पण्डवा ,
बोलता तो बात सहीं.
इस जिंदगी के दिनों का तो ,
गिना चुना ही बचा दर्जा,
आगे की व्यवस्था भी, जो कर लें,
तो क्या हर्जा ?!
अनूठे लाल के मिजाज़,
अब कुछ यूँ पाए जातें है.
गुरूवार हनुमान जी के लिए निर्धारित है,
इसीलिए, बुधवार को थोड़ा,
ज्यादा कबाब खा जातें है !
' उपवास रखा है आज ! ' ,
आधी दुनिया को बतातें है.
रोजाना जितना अन्न,
नहीं खाते जनाब,
उपवास के दिन वो ,
उससे ज्यादा भाव खा जातें है !
मुहबोली बहिन से तो,
रखते है दूरी पर,
साथ साथ,
उसकी पड़ोसन से,
अनामी संबंध भी,
श्रद्धानुसार निभातें है !
पंडित दोष न निकले,
इसीलिए उन्हें भी,
उचित दक्षिणा दे,
अपना स्वर्ग सुनिश्चित करातें है !
कमबख्त तबीयत !
फिर वही कहानी दुहराती.
ढाक के निकलते ,
आखिर में वहीँ तीन पाती !
कुछ भी कर लो,
जुगाड़ मेरे यार,
पुरानी आदतें मगर,
'मजाल' नहीं जाती !
नीयत न हुई सही,
तबीयत वहीँ की वहीँ,
किस्से साहब के गली गली,
मशहूर हो गए.
लोग कहते है ,
क्या खूब बदले हजूर-ए-आला !
'अनूठे लाल' फकत,
'अजीब अली' हो गए !
4 comments:
नीयत न हुई सही,
तबीयत वहीँ की वहीँ,
किस्से साहब के गली गली,
मशहूर हो गए.
लोग कहते है ,
क्या खूब बदले हजूर-ए-आला !
'अनूठे लाल' फकत,
'अजीब अली' हो गए !
bahut khoob!!!
उसने लाल साहब पर,
मौका देख जाल डाला.
' यजमान, थोड़ा करिए संकोच,
कुछ तो शर्माइये,
-कौन लाल साहब??
हा हा!! बेहतरीन!!
ये भी खूब रही समीर भाई को चिंता में डाल दिया आपनें :)
शराब शबाब कबाब और पडोसन को छोडे बगैर कम से कम में काम चला लिया अनूठे लाल ने अज़ीब अली होकर :)
आप सभी का ब्लॉग में पधारने के लिए आभार ..
Post a Comment